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(घ) E6 GB - E B करते समय इस अधिक सक्रिय वाले चक्र को छोटा करके
सामान्य करने की इच्छाशक्ति करें। (ड) C' ( समस्त सिर, bh, 11, 10, 9, 1, 8 और 8 ) G~v - बांये
तथा दांये मस्तिष्क के मध्य में भूरी सी ऊर्जा की अच्छी प्रकार सफाई करें। (च) E (11, 10, 9, bh, j, 8, 8)G~v... इस उपचार में 9, 10 और
bh पर विशेष ध्यान दें। (छ) C(4, 1) /E w (ज) सप्ताह में तीन बार उपचार करें। पार्किन्सनका रोग– Parkinson's Disease or Paralysis Agitans इस रोग में मस्तिष्क असंतुलन से पेशियों में भी असंतुलन उत्पन्न होता है, जिनमें उनमें अपने आप ही कम्पन आदि विकार हो जाते हैं। यह रोग मध्य आयु से प्रारम्भ होता है। सिर एक ओर टेढ़ा हो जाता है और कड़ा हो जाता है। शरीर एक ओर झुक जाता है, बाहें भी झुक जाती हैं और उंगलियां टेढी हो जाती हैं। अंगूठे अंगुलियों के पास एक गोली के आकार के क्रम में लय से (thythmically) घूमते रहते हैं। जांधे छोड़ी सी शरीर दो नाग की तरफ टेढ़ी हो जाती हैं। रोगी बहुत छोटे-छोटे बनावटी नजाकत से (mincing) कदम रखता है। चेहरे की त्वल्ला चिकनी और बगैर झुर्रियों के होती है, जिससे वह एक मुखौटा सा लगता है, चेहरे पर किसी प्रकार का भाव नहीं आता। वाणी धीमी होती है और वह स्वयं ही कुछ बार-बार बड़बड़ाता रहता है।
इस रोग में 1 पर खालीपन होता है, यह चक्र कम सक्रिय होता है और इसमें गंदी लाल रोगग्रस्त ऊर्जा भरी होती है। 6 पर घनापन होता है, यह चक्र अधिक सक्रिय होता है और इसमें गंदी लाल रोगग्रस्त ऊर्जा भरी होती है। bh और 9 पर खोखलापन होता है, ये चक्र अधिक सक्रिय होते हैं तथा इनमें गंदी लाल रोगग्रस्त ऊर्जा भरी होती है।
रीढ़ की हड्डी तथा उसके आसपास का भाग गंदी लाल रोगग्रस्त ऊर्जा से अवरुद्ध रहते हैं। शरीर पर ऊर्जा का बहुत खोखलापन (depletion) होता है। अन्य चक्रों पर भी प्रभाव पड़ता है। उपचारक को रोगी के मुकाबले में काफी शक्तिशाली होना पड़ेगा, अन्यथा वह स्वयं ही थक जायेगा और उसकी ऊर्जा खाली हो जाएगी। इस रोग की मूल जड़ मूलाधार चक्र के गलत ढंग से कार्य करने से है। स्वस्थ
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