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________________ (ग) यदि रक्तचाप अभी भी स्थिर नहीं हुआ है, तो c (3, 6)/E 3 IB द्वारा 3 का संकुचन द्वारा करें तथा साथ-साथ उसके चक्रों के औसत आकार के लगभग आधा आकार हो जाने की इच्छा शक्ति करें। (घ) C' (AP तथा समस्त सिर का क्षेत्र) G~v, पुन: जांच करें। यदि शरीर का दांया भाग प्रभावित है तो मस्तिष्क के बांये भाग का उपचार करिये और यदि शरीर का बांया भाग प्रभावित है तो मस्तिष्क के दाये भाग का उपचार करिये। हरे प्राण का घोलनात्मक प्रभाव होता है। (ङ) c (11, 10, 9, bh}/ E Gv, पुनः जांच करे, फिर c (च) C (समस्त गर्दन का क्षेत्र, j, 8, 8)/ E Gv (छ), (ज) - उक्त (क) के (च), (छ) के अनुसार (झ) 0715 हृदय (7b के माध्यम से) GR (ञ) C"6. CLIE 6 GBO - 6 की सफाई बहुत महत्वपूर्ण है। (ट) C (1, 4)/ E R. यह शरीर की शक्ति बढ़ाने के लिए है। किन्तु, यदि रक्तचाप स्थिर नहीं हुआ है, तो E न करें। (ठ) C21 E R- इससे पैरों को ताकत मिलेगी। (ड). (ढ) - उक्त (क) के (ठ), (ड) के अनुसार (ण) उपचार सप्ताह में तीन बार करें। रोगी को शारीरिक उपचार (Physical Therapy) भी करने के लिए कहें। कुछ रोगियों के साथ परिणाम ड्रामा की तरह होते हैं। परिणाम रोगी की हालत तथा उसकी ग्रहणशीलता तथा उपचारक की कुशलता पर निर्भर करती है। ५.२५१
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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