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________________ (ख) 071 E (हृदय) (7b के माध्यम से) GR - अनुभवी और कुशल उपचारक E GOR करें। C 7f C" 6/ E GV (ङ) (1, 4) ER (च) C (11, 10, 9, 81 E (कम GV (छ) आवश्यक्तानुसार सप्ताह में कई बार उपचार करें। धमनियां (रक्त नलिकाओं) की दीवाल मोटी तथा कड़ी हो जाना Arteriosclerosis or Atherosclerosis (क) GSRG (ख) C (समस्त मुख्य चक्र एवम् मुख्य अंग) G (ग) C (9, 10, 11, bhy E Gv (घ) C (j, 8, 8)- यह महत्वपूर्ण है | E GV (ङ) 071E हृदय (7b के माध्यम से) GR - अनुभवी कुशल उपचारक EO करें। (च) C Lu– (सामने, बगल तथा पीछे से) E Lu (Lub- पिछले फेंफड़ों के माध्यम से) GOR – यह महत्वपूर्ण चरण है क्योंकि G तथा ० फेफड़ों में गुजरते हुए रक्तधारा में अवशोषित हो जायेंगे, जिससे समस्त शरीर में रत की सफाई होगी। इस अवशोषण का नियंत्रण, शरीर स्वयमेव ही कर लेगा! E 0 के समय अपनी उंगलियों को रोगी के सिर की ओर न इंगित करें। (छ) C" 6, CLIE 6 GBV अनुभवी व कुशल उपचारक इसके स्थान पर आंतरिक अंगों की सफाई की। तकनीक - अध्याय ६ क्रम संख्या १० (२८) में वर्णित अपनायें -- इससे 6, L तथा अन्य आंतरिक अंगों की शीध्र सफाई हो जाएगी। (ज) C' (1, 2, 4)/ER (झ) C' (बांहों तथा पैरों पर) GOIE (a, e, H, h, k, S) R- H व 5 को प्रेषित की गई प्राण ऊर्जा का स्थिरीकरण न करें। (ञ) आवश्यक्तानुसार सप्ताह में दो बार इलाज करें। ५.२४४
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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