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(ग) ब्रौंकल (श्वास की नलियां) | फेंफड़े के संक्रमण में, CLu G~O/E Lu
___(Lub के माध्यम से) GOV (उंगलियां सिर की ओर नहीं होनी चाहिए) (१५) पाचनतंत्र का संक्रमण- Gastrointestinal Infections (क) C' (6, 4. पेट का क्षेत्र) G~VIE (6f, 4) GBV
डायरिया हो जाने की संभावना से, ० का इस्तेमाल नहीं किया जाता। (ख) ज्यादा गंभीर केस में उक्त (क) के अतिरिक्त,
C' 5G/EGV (ग) और अधिक गंभीर केस में जैसे (Amebiasis, टायफायड के बुखार आदि में)
उक्त (क) व (ख) के अतिरिक्त क्रम (७) में वर्णित उपचार भी करें। (१६) यकृत संक्रमण- Liver infections (क) C" 6G (ख) C (L-सामने, बगल व पीछे की ओर से) G~v (ग) E6f GBV - प्राण ऊर्जा को L में जाते दृश्यीकृत करें। (घ) L का उपचार दिन में कई बार करें, जब तक पर्याप्त सुधार नहीं होता। (ड) 5 (सावधानी से), क्योंकि जीहा भी प्रभावित होता है। (च) क्रम (७) में वर्णित उपचार भी अवश्य करें।
यह समस्त उपचार मलेरिया के लिए किया जा सकता है। इसमें अध्याय ६ के क्रम सं १० (३०) में वर्णित रक्त की सफाई क्रिया करें। इसके अतिरिक्त आगे, बगल व पीछे सभी ओर से फेफड़ों का C करना तथा पिछले फेंफड़ों के माध्यम से फिड़ों का E GO करना पड़ेगा। जो समुचित रूप से
अनुभवी उपचारक नहीं हैं, वे बजाय E GO के E (Wया V) करें । (१७) मूत्र संबंधित संक्रमण- Urinary Infections (क) मूत्र मार्ग (Urethra) तथा मूत्राशय के संक्रमण में
C' 2 G-O/E GBV (ख) गुर्दे के संक्रमण में c KG-O: c 31E GBVIC 3
यदि 3 अधिक सक्रिय हो, तो उसे E IB से संकुचित करें। (१८) रतिज रोग- Veneral Diseases
(क) F 2 IBI CG~0/E GBV