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(१२) जिन रोगियों की उम्र १५ से ४५ के बीच में हो, केवल उन्हीं पर
यह तकनीक करनी चाहिए। बच्चों के अविकसित अंग तथा वृद्ध लोगों के कमजोर होने के कारण, इस तकनीक द्वारा उत्पादित अधिक प्राण ऊर्जा को वे ग्रहण न कर पाने के कारण इस तकनीक द्वारा उनको हानि पहुंच सकती है। शिशु का मस्तिष्क
स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो सकता है। (झा) इस उपचार की विधि/प्रक्रिया निम्नवत है: । (१) रोगी को जीभ को तालु लगाने के लिए कहें।
GS (२ या ३) (२) 1 और 3 की सामने तथा बगल से जांच करें कि ये सामान्य
आकार के हैं। 3 का आकार 1 से आधा या दो-तिहाई तक होता है। 3 के आकार को 1 के आकार के बराबर कर लें,
यद्यपि इससे रक्तचाप थोड़ा सा बढ़ेगा। (३) C1/ E IR, इस चक्र को व्यास से एक या २ इंच बढ़ा होने की
इच्छा करें एवम् दृश्यीकृत करें। यदि लाल प्राण की शक्ति घटानी हो, तो IR के स्थान पर R करें। c3/ FIR इसका चक्र बड़ा न करें, क्योंकि यह पहले से ही अधिक सक्रिय है। अधिक सक्रियता से उच्च रक्तचाप हो जायेगा। ER से यह स्वयमेव ही बढ़ जाता है। यदि लाल प्राण
की शक्ति घटानी हो, तो IR के स्थान पर R करें। (५) कब तक E (1, 3) करें, इसका कोई निश्चित उत्तर नहीं है।
जो ज्यादा शक्तिशाली उपचारक नहीं हैं, उनके लिए यह समय तीन से सात सांस लेने की प्रक्रिया तक और बहुत शक्तिशाली उपचारकों के लिए, यह कुछ ही सैकिन्ड काफी है। E 3
अधिक देर तक नहीं करना चाहिए । (६) 1 तथा 3 की सामने और बगल से पुन: जांच करें। रोगी से
पूछे। यदि रोगी पीछे सिर में दर्द या अलसाया हुआ महसूस