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________________ (घ) शारीरिक उपयोग(१) टूटी हड्डियां (२) त्वचा की समस्यायें (३) कोशिकाओं की मरम्मत (४) हाजमा शक्ति बढ़ाना (५) शक्तिशाली कोशिकाओं, अंगों और अस्थियों को विकसित करना (६) यदि कम मात्रा में इस्तेमाल की जाये तो यह कैटेलेटिक एजेन्ट (Catalytic agent) का काम करता है; किन्तु समुचित मात्रा में इस्तेमाल करने से पर विपनाने का कार्य करता है। (७) जब R और Y एक के बाद एक इस्तेमाल किये जाते हैं तो कोशिकायें तेजी से बढ़ती हैं। इसलिये यह बालों के बढ़ने में यह प्रक्रिया की जा सकती है। (E) शरीर द्वारा नये प्रत्यारोपित अंग को ग्रहण एवं अवशोषित करने के लिए R और Y का प्रयोग किया जा सकता है। इससे उस अंग के अग्राह्यता का खतरा कम हो जाता है। (६) मात्र Y अकेले का ही उपयोग घाव, जले पर या टूटी हड्डियों के उपचार में नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे घाव का निशान या उभार पैदा हो जायेगा। (१०) कभी-कभी अति सूक्ष्म जीव द्रव्य चैनलों के आंशिक बन्द हो जाने के कारण बीमारी पैदा हो जाती है। इसके उदाहरण निकट दृष्टिवत्ता अथवा दूर दृष्टिवत्ता है। ऐसे केस में पहले G द्वारा ऊर्जित करके आंखों में की रोगग्रस्त और इस्तेमाल हुई ऊर्जा को दीला करके अत्यन्त सूक्ष्म टुकड़ों में तोड़ा जाता है। फिर थोड़ी सी Y को प्रेषण करके इन सूक्ष्म टुकड़ों को ग्रुप किया जाता है। तत्पश्चात् स्थानीय झाड़ बुहार द्वारा इनको साफ कर दिया जाता है। B के स्थान पर Y इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि 8 न सिर्फ प्रयोग की हुई ऊर्जा निकालती है, अपितु ताजी प्राणशक्ति को भी निकाल देती है। ५.१६३
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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