________________
अध्याय - ८
रंगीन प्राणशक्ति ऊर्जा
Coloured Pranic Healing (मूल लेखक श्री चोआ कोक सुई Choa Kok Sui; जिन्होंने अपने गुरु श्री मी लिंग Mei Ling से मार्गदर्शन प्राप्त किया है) (क) भूमिका
जैसा कि भाग ४ के अध्याय १५ के अन्तर्गत वर्णन किया है कि वायु, सूर्य और भूमि से प्राप्त ऊर्जा प्राण सफेद ऊर्जा अथवा साधारण ऊर्जा होती है जो छोटे-छोटे आकाश मण्डल (Globules of light) जैसे भासित होते हैं। इनके स्रोत का वर्णन भाग ४ के अध्याय ८ में वर्णित है। प्लीहा चक्र वायु का मुख्य स्त्रोत है। भू-प्राण तलुवे के चक्रों के माध्यम से प्राप्त होकर मूलाधार चक्र में जाता है। इसका एक भाग रीढ़ की हड्डी में होकर ऊपर जाता है, जब कि इससे बड़ा भाग पैरिनियम चक्र होते हुए नाभि चक्र, फिर प्लीहा चक्र को जाता है। वायु प्राण एवम् भू-प्राण की सफेद ऊर्जा को प्लीहा चक्र ग्रहण करके उसको छह प्रकार की प्राण ऊर्जा (भाग ४ अध्याय ६) अर्थात लाल, नारंगी. पीला, हरा, नीला और बैंगनी रंग के प्राणों में परिवर्तित करके अन्य प्रमुख चक्रों को वितरित कर देता है। इसके अतिरिक्त विद्युतीय -बैंगनी ऊर्जा दिव्य ऊर्जा के रूप में होती है जो दिव्य आशीर्वाद से प्राप्त होती है और ब्रह्म चक्र द्वारा ग्रहण की जाती है। यह जीव द्रव्य के सम्पर्क में आने के पश्चात् धीरे-धीरे स्वर्णमयी ऊर्जा (भाग ४, अध्याय ६) में परिवर्तित हो जाती है। इस स्वर्णमयी ऊर्जा को जब शरीर शोषण कर लेता है तो इसका रंग हल्का लाल हो जाता है। (२) उपयोग में आने वाली रंगीन ऊर्जा किस प्रकार की होती है (क) रंगीन ऊर्जा- सफेद प्राण ऊर्जा से अधिक शक्तिशाली होती है। जैसे कोई एक
डाक्टर सामान्य व दूसरा किसी विषय में विशेषज्ञ होता है। उपचार में गहरे रंगों का इस्तेमाल न करें क्योंकि इससे विपरीत प्रभाव पड़ता है और रोगी की उल्टी प्रतिक्रिया हो सकती है। उदाहरण के तौर पर हल्के लाल रंग की ऊर्जा
५.१४८