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चन्द्र (इन्द्र) । सूर्य (प्रतीन्द्र)
ग्रह
विवरण/ | प्रकार
नक्षत्र
तारा
सात धनुष प्रमाण
उत्सेध (ऊँचाई)
नक्षत्र
१७६
११७६
प्रमाण चन्द्र । सूर्य | ग्रह
अस्थिर तारा
स्थिर
ध्रुव तारा जम्बूद्वीप में
| १,३३,६५० कोड़ा कोड़ी ३६ लवण समुद्र में
3५२ J2.1080 ""
१३६ धातकी खण्ड द्वीप में
१०५६ ३३६ ८.०३.७००
१०१० कालोदधि समुद्र में | ४२ । ३६६६ | २८.१२.६५०
४१,१२० पुष्करार्ध द्वीप में ७२ । ७२ | ६३३६ । २०१६ ४८,२२.२०० "" ५३.२३०
योग | १३२ । १३२ । ११.६१६ | ३.६६६ | ८८,४०,७०० कोड़ा कोड़ी | ६५५३५ ,
मानुषोत्तर पर्वत से ५०,००० योजन आगे जाकर प्रथम वलय है। इसके पश्चात् स्वयम्भूरमण समुद्र की वेदी से ५०,००० योजन पहले तक, प्रत्येक एक लाख योजन आगे जाकर द्वितीयादिक वलय हैं। यह समस्त वलय (जगच्छ्रेणी + १४ लाख योजन)-२३) प्रमाण हैं। प्रथम वलय में १४४ चन्द्र व १४४ सूर्य हैं। पुष्करवर समुद्र के प्रथम क्लय में स्थित चन्द्र एवं सूर्य प्रत्येक २८८-२८८ हैं। इस प्रकार अधस्तन द्वीप अथवा समुद्र के प्रथम वलय में स्थित चन्द्र-सूर्यों की अपेक्षा तदन्तर उपरिम द्वीप अथवा समुद्र के प्रथम वलय में स्थित चन्द्र और सूर्य स्वयम्भूरमण समुद्र पर्यन्त दुगने-दुगने होते चले गये हैं।
चन्द्र, सूर्य का गमन मात्र मानुषोत्तर पर्वत के अन्तर्गत ही हैं, उससे आगे नहीं है। सुमेरु पर्वत से ४४,८२० योजन जाकर चन्द्र एवम् सूर्य की आभ्यन्तर (प्रथम) वीथियाँ है।
इन देवों में पीत लेश्या का जघन्य अंश रहता है।
ज्योतिष देवों में जन्म लेने, सभ्यक्त्वादि ग्रहण के विषय में भवनवासी देवों के समान ही कथन जानना चाहिये।
जिन भवनों की संख्या ज्योतिष्क देवों की संख्या में संख्यात का भाग देने से आता है।
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