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भाग - ३ शरीर की रक्षा
अध्याय- १ आवश्यक्ता जैसा कि भाग २ में वर्णन किया हैं, धर्म साधन हेतु शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य होना आवश्यक है। शरीर के विषय में संक्षिप्त जानकारी करने के बाद, उसकी सुरक्षा के उपाय भी संज्ञान में होना चाहिये। प्रातः भ्रमण, योग, व्यायाम, स्वास्थ्य परीक्षण, भोजन आदि इससे सम्बन्धित विषयक हैं।
चक्र
कार्य
योग विद्या के अनुसार शरीर का संचालन उसमें स्थित सात चक्रों द्वारा होता है, इनका अन्तःस्त्रावी ग्रंथियों (जिनका वर्णन भाग २ के अध्याय १० में दिया है) से गहरा कायध है : मित्र ३१ में इनकी अवस्थिति दर्शायी गयी है।
इनकी शरीर में स्थिति एवं कार्य निम्नवत् हैं : चक्र चक्र का नाम | शरीर में स्थिति संख्या मूलाधार मेरुदण्ड के अन्तिम मनके अस्थियों, माँसपेशियों का
(coccyx) के नीचे, गुदा के नियमन, शक्ति, ओजस्विता, पास
| रक्त की गुणवत्ता आदि। स्वाधिष्ठान नाभि के नीचे और जननांग, पैर, मूत्राशयादि
जननेन्द्रिय से ऊपर नाभि केन्द्र में
| आँतें, पेट, जीवन की स्फूर्ति | अनाहत हृदय के समतल, दोनों | हृदय, फेंफड़े
स्तनाग्रों के मध्य में ५. विशुद्ध कण्ठ में
| गर्दन, कण्ठ
मणिपुर