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________________ अध्यात्म बारहखड़ी २५१ सम्यक मुक्ता फल तवै, उपजै अदभूत रूप। ताकरि भूषित मुनिगना, रै स्वसिन्दि अनुप॥ ३५ ॥ शूर वीर तेरे जना, जीतें मोह विकार। त्यागि शून्यता चित्त की, पांवें ज्ञान अपार ।। ३६ ।। नहि शूरत स्वभाव है, मिथ्यादृष्टिनि मांहि। रै काल तें मूढ ए, धीर वीरता नाहि ॥ ३७॥ शूली कहिये रुद्र कौं, धारै हाथ त्रिशूल। रुद्र जपैं तोकौं प्रभू, तू दयाल शिव मूल ॥३८ ।। शूलारोहण आदि दे, नरक वेदनां नाथ। पार्दै जे तोहि न भजै, करै विषय को साथ॥३९ ।। शूकर कूकर आदि वहु, निंदि जौनि सठ जीव। पावै तेरी भक्ति विनु, भव भव कष्ट अतीव ॥ ४० ॥ शून्यवादि आदिक जड़ा, जे तुहि गां नाहि । जनम मरन अति ही करें, भवसागर कैं मांहि ।। ४१ ।। शूची सूत्र विना नसँ, तुव सूत्रै विनु जीव। भव वन मैं भरमण करे, दुख पावै जु अतीव ॥ ४२ ॥ शेखर जग को तू सही, भमैं शेमुषी धार। नाम शेमुषी बुद्धि को, तू है बुद्धि हु पार ।। ४३ ।। शेष अलप को नाम है, नाम अशेष समस्त । अलपकाल मैं भव तिरै, तेरे दास प्रसस्त ॥४४॥ लहैं अशेष स्वभाव कौं, भक्ति भाव परभाव। शेश सुरेश तुझे रटैं, तू त्रिभुवन को गव॥४५ ।। शेक सींचवे कौं कहैं, तू सोंचें तरु धर्म । करुणा रस परकास तू, करुणाकर अतिपर्म।। ४६ ।।
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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