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आरम्भिक व प्रकाशकीय अध्यात्म-प्रेमी पाठकों के हाथों में पण्डित दौलतराम कासलीवाल कृत 'अध्यात्म बारहखड़ी' समर्पित करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है।
बसवा में जन्मे पण्डित दौलतराम कासलीवाल ढूँढारी भाषा के जाने-माने कवि हैं। इन्होंने 'अध्यात्म-बारहखड़ी' की रचना संवत् 1798 (सन् 1741) में उदयपुर में की थी। इसमें शुद्ध आत्मा परमात्मा/जिनेन्द्र की भक्ति में अ" से लेकर 'ह' तक को बारहखड़ी से बननेवाले पदों से रचना की गई है। अध्यात्म . रस से भरी इस रचना में कवि ने अविनाशी आनन्दमय आतमराम' को गाया है।
कवि धर्म के क्षेत्र में ऊँच-नीच की मान्यता को स्वीकार नहीं करते । जो प्रभु को भजता है वह उनका हो जाता है । कवि साधर्मी उसे ही मानते हैं जो परमात्मा की भक्ति में लीन है तथा जो विमुख हैं वे विधर्मी हैं।
आध्यात्मपरक इस ग्रन्थ में शान्त, वैराग्य, भक्तिरस के अतिरिक्त शृंगार, वीर, वीभत्स आदि सभी रसों को यथाअवसर स्थान प्राप्त हुआ है। अरिल, त्रिभंगी, इन्द्रवज्रा. मोतोदान, भुजंगीप्रवात, दोहा, चौपाई, छप्पय, सवैया, सोरठा आदि विविध छन्दों का कुशल प्रयोग कवि ने किया है।
हमें लिखते हुए हर्ष है कि शास्त्र-मर्मज्ञ श्री ज्ञानचन्द बिल्टीवाला ने इस ग्रन्थ का सम्पादन कर जैनविद्या संस्थान को प्रकाशित करने के लिए सौंपा, इसके लिए हम उनके आभारी हैं। दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी द्वारा संचालित 'जैनविद्या संस्थान' जैनधर्म दर्शन एवं संस्कृति ही बहुआयामी दृष्टि को सामान्यजन एवं विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत करने हेतु प्रयत्नशील है। इसका प्रकाशन इसी उद्देश्य की पूर्ति में सहायक है।
पुस्तक प्रकाशन के लिए जैनविद्या संस्थान के कार्यकर्ता एवं जयपुर प्रिन्टर्स प्राइवेट लिमिटेड, जयपुर धन्यवादाह हैं।
नरेन्द्रकुमार पाटनी नरेशकुमार सेठी मंत्री
अध्यक्ष प्रबन्धकारिणी कमेटी दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री पहाघोरजी
डॉ. कमस्तचन्द सोगाणी
संयोजक जनविद्या संस्थान
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