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अध्यात्म बारहखड़ी
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पगि पगि निधि दासांनि को, दास निरीह निकांम। तेरी पख विनु और घख, राखें नाहि विरांम ।। २३ ।। पगे नही विषयनि विषै, पगे तोहि मैं धीर। पणधारी तु पार कर, अपठपाठ अतिवीर ।। २४॥ पख पख मास उपास धरि, तप करि मुनिवर धीर। मन इंद्री अवरोध करि, तोहि भजें वरवीर ।। २५ ।। भजन विना अति तप करै, तौउ न कर्म हनेय । भजन सहित तप आदर, भव जल कौं जल देय ॥२६॥ परचा प्रगट जु रावर, तारै अमित अपार। पतिराखन दासांनि की, तू जगपति अविकार ।। २७ ।। पदवीधर सेवै तुझें, लहैं उच्चता सेय । तू हि पदारथ परम है, तुव भरि ताहि लाहय ।। २४ । । पवि कहिये प्रभु वज्र कौं, वज्री तेरे दास। परतखि देव परोक्ष तू, भज्यां कट जम पास ।। २९ ।। प्रतिमा तेरी पूजि है, देवल तेरौ पृजि । प्रतिमा तैं विपरीत जे, तिनकै तोते दूजि॥३०॥ परम पयोनिधि गुननि को, प्रमित रहित जगदीस। पल पल मैं मुनि ध्यांत्रही, मुनि तारक तू ईस ।। ३१ ।। पल भक्षण सम पाप नहि, याते करुणा नास! करुणा विनु कुगति लहँ, करुणा भगती प्रकाश ॥३२॥ पष्ट किये सव कर्म नैं, पुष्ट किये सब धर्म परम प्रफुल्लित वदन त, अति प्रसन्न विनु भर्म ।। ३३ ।। प्रतिविंवित तोमैं सबै, तुव प्रतिबिंव जु पूजि। दिढ जु प्रतज्ञा धारि कैं, पूजहि दास अदृजि ।। ३४।। प्रवचनसार जु, तूही, समयसार अविकार । तेरौं प्रवचन सुनि प्रभू, पांवहि भक्ति बिचार ।। ३५ ।।