________________ चार महान श्लोकः आदिश्वरो जिनवरः शिवमार्गदर्शी श्रीनाभिराज शुचिवंश समुद्रचंद्रः इक्ष्वाकुवंश रिपुमर्दन मुक्ति (श्री) भोगी. शाखा कलापकलितः शिवशुद्धमार्गः // 1 // कष्ट प्रणाश दुरित प्रशमेसु दृक्षः ज्ञानाम्बुधे ! सुखय तारक विघ्नहर्तः मोहापनोदन निवारितलोककष्ट तालं विघट्टय विभो ! हृदयङ्गमत्वम् // 2 // श्रीमानतुङ्गगुरुणा कृतबीजमंत्र यत्र स्थितौ सकलपूज्यसुपाहपीठ. कारूण्यपूर सुखकंद विशालगात्र क्रौ धौ दिवाकर कुरुष्व हिताय ह्रीं श्रीं // 3 // त्वं विश्वनाथ पुरुषोत्तम वीतराग त्वं जैनराज. कथितो मुनिगम्यरूप उच्चाटभंजनवपुः खलु दुःख हन्तः त्वं धर्मरक्षक जिन प्रपुनीहि देव // 4 //