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________________ 3४८ Thor धन्य दुर्ग तरावली तेरा भी भाग्य विशाल हैं। आनन्द कन्द दिनिन्द सुरतरु पूज्य घासीलाल है ॥ ३ ॥ बाळ बय दीक्षित हुये आवाल ब्रह्मचारी नतम् । न्याय तर्क सिद्धान्त कौमुद कोष काव्यालंकृतम् ॥ पंचदश भाषा विशारद दिव्य दमकत भाल है। आनन्द कन्द दिनिन्द सुरतरु पूज्य घासीलाल है ॥४॥ उदयपुर भूपाल कोल्हापुर विरत हुवे पाप से। सिन्ध की लाखों प्रजा सद्बोध पाई आप से॥ सैंकडो क्षत्रिय कुलो उज्वल किया किरपाल है। आनन्द कन्द दिनिन्द सुरतरु पूज्य घासीलाल है ॥५॥ आगमों पर भाष्य टीका सरस शैली में रची। दंडियों की दम्भलीला हिलगई हलचल मची ॥ श्रीमान के ही कंठ शोभित जैन मत जयमाल है। आनन्द कन्द दिनिन्द सुरतस पूज्य घासीलाल है ॥६॥
SR No.040001
Book TitleAdbhut Nityasmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages478
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size87 MB
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