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(५१) जो स्तोत्रवर यह ऋद्धिदायक सिद्धिदायक सर्वदा । श्री वर्धमान जिनेन्द्र को जो भावसे रटते सदा । सब ऋद्धियां भव सिद्धियां सुरवृक्ष चिंतामणि तथा । आकर मिले अनुकूल होकर उसे सबही सर्वथा ॥ ५१ ॥
श्री वर्धमान जिनेन्द्र का शुभनाम ही एक दोर है। उसमें ग्रथित गुण पुष्प निर्मल ग्रन्थ कीर्ति सुकोर है। जो घासीलाल मुनीशकृत स्तुति मेजुमाला कण्ठ में । धारण करे उसको मिले त्रयलोक लक्ष्मीलोक में ।। ५२ ।।
॥ संपूर्णम् ॥
॥ श्रीरस्तु ॥