________________ Verse 25 Acarya Kundakunda's Pravacanasara: समओ दु अप्पदेसो पदेसमेत्तस्स दव्वजादस्स / वदिवददो सो वट्टदि पदेसमागासदव्वस्स // 2-46 // और काल-द्रव्य प्रदेश से रहित है, अर्थात् प्रदेशमात्र है, वह कालाणु आकाश-द्रव्य के निर्विभाग क्षेत्ररूप प्रदेश में मंद गति से गमन करने वाला तथा एक प्रदेशरूप ऐसे पुद्गल जातिरूप परमाणु के निमित्त से समय-पर्याय की प्रगटता से प्रवर्तता है। And, the substance of time (kala dravya) is without space-points (pradesa); it occupies just one space-point (pradesa). As the indivisible atom of matter (pudgala-paramanu) traverses slowly in the substance of space (akasa dravya) from one space-point to the other, the time-atom (kalanu) evolves into its mode (paryaya) of time (duration or samaya). Acarya Kundakunda's Niyamasara: समयावलिभेदेण दु दुवियप्पं अहव होइ तिवियप्पं / तीदो संखेज्जावलिहदसंठाणप्पमाणं तु // 31 // समय और आवली के भेद से व्यवहारकाल के दो भेद हैं, अथवा अतीत, वर्तमान और भविष्यत् (अनागत) के भेद से तीन भेद हैं। उनमें अतीत काल, संख्यात आवली से गुणित हतसंस्थान (अर्थात् संस्थान से रहित सिद्धों) का जितना प्रमाण है उतना है। भावार्थ - व्यवहारकाल के समय और आवली की अपेक्षा दो भेद हैं। इनमें समय काल-द्रव्य की सबसे लघु पर्याय है। असंख्यात समयों की एक आवली होती है। यहाँ आवली, निमिष, काष्ठा, कला, नाड़ी, दिन-रात आदि का उपलक्षण है। दूसरी विधि से काल के भूत, वर्तमान और भविष्यत् की अपेक्षा तीन भेद हैं। इनमें भूतकाल संख्यात आवली से गुणित सिद्धों के बराबर है। The empirical (vyavahara) substance of time (kala) is of two kinds: the samaya and the avali. Or, it is of three kinds: the past . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 57