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________________ * 1371 हुये 10 उपवास का फल, मार्ग में 15 उपवास का फल, देरासर का दर्शन होते महीने के उपवास का फल, श्री जिनेश्वर प्रभु के दर्शन से 1 वर्ष के उपवास का फन, तीन प्रदिक्षणा से एक सौ वर्ष के उपवास का फल, श्री जिनेश्वर देव की पूजा से हजार वर्ष का फल और श्री जिन स्तवना से अनंतगुणा फल प्राप्त होता है / कहा है कि न्हवरण स्नात्र करने से एक सो गुणा विलेपन से हजार गुना, पुष्प माला पहनाने से लाख गुना और गीत, नृत्य, वाजिन आदि भावपूजा से अनंतगुणा 'कचन मणि और सुवर्ण के हजार यंमों वाला,' सुवर्ण की तल भूमि, श्री जिन भवन कराये उससे भी तप और संयम अधिक है। यह सुनकर बलात्कार श्रीचन्द्र की अनुमति लेकर प्रतापसिंह राजा, और सूर्यवती पटरानी आदि अनेक रानिओं, लक्ष्मीदत्त प्रिया सहित, और मति राज प्रादि मत्रियों ने दीक्षा ग्रहण की। कितनों ने सर्व विरति कईयों ने सम्यक्त्व और देश विरति यथाशक्ति व्रत लिये / श्रीचन्द्र राजाधिराज ने प्रियाओं सहित श्रावक धर्म स्वीकार किया / सम्यक्त्व मूल पांच व्रत सात उत्तर व्रत इस कार श्रावक के 12 व्रत लिये / श्री अरिहंत भगवान को नमस्कार करके अभिग्रह किया प्रमाण करते हैं / 'अरिहंत मेरे श्रेष्ट देव हैं, निग्रेन्थ सुसाधू मेरे गुरु हैं और जिनेश्वर' देवों ने जो कहा है वह ही तत्व है / इस प्रकार जावजीव सम्यवत्व को धारण किया / श्री जिनेश्वर देव की त्रिकाल पूजा करुंगा, उभयकाल आवश्यक क्रिया करुंगा / श्री जिनेश्वर देव के गर्भ गृह में दश विध प्राशातना टालूगा / तंबोल, पशुची डालना विकथा, नींद भोजन पानी कीड़ा कलह, जूती और हास्यकथाये दश P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036499
Book TitleVardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddharshi Gani
PublisherVishva Shanti Prakashan
Publication Year
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size136 MB
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