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________________ *117* कुडलपुर में भील जिस गंध हस्ती को लेकर पाया था वह हाथी हमारे से तो वहां से आता ही नहीं इसलिये आप स्वयं चलकर उसे शिक्षा दो। उसी समय श्रीचन्द्र राजा ने कुडलपुर की तरफ प्रयाण किया / सुवेग पर रथारूढ़ होकर वे वहां आये। सब राजाओं ने उनका बड़ा ही आदर सत्कार किया / राजा को गध हस्ति ने भी नभस्कार किया, श्रीचन्द्र राजा ने गजराजेन्द्र को उसके नाम से पुचकार उस पर मारूढ़ हो गये / चन्द्रमुखी, चन्द्रलेखा, वीरवर्मा के कुटुम्ब और विशा. रद आदि के साथ तिलकपुर में आये / तिलक राजा ने उन्हें बड़े प्रादर से नमस्कार किया और एक महान् महोत्सव किया। मार्ग में श्रीचन्द्र राजा चन्द्रकला सहित कई देश के राजाओं से पूजिन होते हुये वसतपुर में वीरवर्मा को राजा बनाकर, गंध हस्ति पर मारुढ़ हुये, मुकुट, कुडल आदि उज्जवल ऋद्धि सहित ऐसे सुशोभित हो रहे थे जिस प्रकार इन्द्र ऐरावण हाथीं पर शोभता है / पुत्र का मागमन सुनकर शीघ्र मिलने की उत्कंठा वाले प्रतापसिंह राजा ने मंत्रियों, बाजों, अन्तपुर, नगर के लोगों, नाटक मंडलियों आदि सहित कुशस्थल से प्रयाण किया / पुत्र के समाचार प्राप्त कर लक्ष्मीदत्त श्रेणी भी राजा के मादेश से रत्नपुरी से बड़े हर्षोत्सव पूर्वक रवाना हुये। ::पिता के प्रागमन को देखकर पुत्र सर्व ऋद्धियों सहित सन्मुस 1. प्रायाः / श्रीचन्द्र ने जब पिता के हाथी को देखा उसी समय वे अपने :: हस्ति! पर से उत्तर कर पैदल चलने लगे / प्रतापसिंह भी हाथी पर से उत्तर पड़े। उसी समय पुत्र ने पृथ्वी पर झुककर पिता के चरण P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036499
Book TitleVardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddharshi Gani
PublisherVishva Shanti Prakashan
Publication Year
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size136 MB
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