________________ 91151 है, इस मठ के नजदीक नई धर्मशाला बनवाप्रो / इतना कहकर वह जो पीछे की तरफ शिला थी उसे उठाकर दूर रखी और पृथ्वी खुदवाते हुये मद्भुत गुफा देखी। उसमें से राजा सवं सुवर्ण मोती आदि वस्तुप्रों को बाहर निकाल कर देखने लगे तो पूर्व की तथा अभी की चोरी हुयी सर वस्तुयें प्राप्त हो गई। हे राजन् प्रापका पुष्प अपूर्व है, अद्भुत भाग्य है, आपकी परीक्षा भी अद्भुत है और आप परोपकार करने में भी अनन्य हैं इसकी प्रकार की स्नवना को करते हुये, श्रीचन्द्र राजा ने वीणारव और जिस 2 की जो वस्तुमें थी वह सब को दे दी / तीनों अवधूतों को जितशत्रु राजा को सोंपकर महोत्सव पूर्वक अपने महल में प्राये / जितशत्रु राजा चोरों को चाबुक मादि से सजा देते हैं परन्तु वे अपना नाम आदि कुछ नहीं बताते / राजा उनको चोर जानकर कोटबाल को वध करने के लिये मादेश देता है / ऐसा जानकर बुद्धिशाली श्रीचन्द्र ने चोरों को बुलाकर पूछा, तुम कौन हो? मोर तुम्हारा क्या नाम है ? जब उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया तब राजा ने कहा, महो लोहखुर ! क्या तूं मुझे नहीं पहचानता? मैंने तुझे महेन्द्रपुर की सीमा पर पुत्री सहित जीवित हो जाने दिया ? तेरी अवस्वापिनी विद्या को मैं जानता हूं। हे रत्नखुर! प्रथम के माम्रफल का दान क्या तुझे यार नहीं है ? ये तीसरा कौन है, यह कहो / वे तीनों राजा के चरणों में झुक पड़े / सोहसुर ने कहा, हमारा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust