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________________ इसलिये तेरा उद्यम व्यर्थ जायगा / ऐसा कहकर रज को लेकर वीणारब के उतारा की तरफ फूका। ... .... रक्षक और वीणारव आदि निद्राधीन हो गये / तब चोर अन्दर गये और गध द्वारा धन को प्राप्त कर नगर से बाहर निकले। उनके मर्म को जानने वाले श्रीचन्द्र ने भी उनका पीछा किया, उनके कये हुये मठ में आकर पीछे के भाग में धन रखकर, शिला से गुफा को बन्दकर, अवदूत का वेश पहन कर मठ में प्रांकर सो गये / यह सब कुछ देख श्री चन्द्र भी राजमहल में जाकर सो गये / प्रातः होते ही यह बात सब जगह फैल गयी कि आज भी वीणारव का धन चोरों ने चुरा लिया है।, ... . ... . . _राज्य सभा में सब राजा, मन्त्री प्रादि बैठे थे कुण्डल नरेग गुस्से से जिन शत्रु से कहने लगे कैसा तुम्हारा राज्य है जहां प्रजा को कोई सुखं नहीं ? जहां चोर बार 2. चोरी कर जाते हैं / जितशत्रु राजा अवनत मुख हो गये / यह देख भीचन्द्र बोले जो वीर श्रे ताम्बूल ग्रहण कर चोरों को पकड़ कर लाएगा उसे मैं अपने विवाह की पहेरामणी दे दूंगा। सभा में बैठे हुए लोगों ने कहा हे देव ! तांबूल लेने वाला कोई नहीं है प्रागे भी सब उपाय व्यथ गये हैं / सब सोच में पहे गये, इस प्रकार दोपहर हो गई। ...... . * उन सब बातों से अज्ञात सूर्यवती माता ने कहलाया कि देव __पूजा का समय होगया है. और भोजन का समय होगया है सवको भूख P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036499
Book TitleVardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddharshi Gani
PublisherVishva Shanti Prakashan
Publication Year
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size136 MB
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