________________ नहीं चाहिये / अति संकट हो वहां जाना नहीं, विषम पंथ पर जाना नहीं, महापंथ पर जाना नहीं, संम पंथ पर जाना / परस्त्री संकट है, विधवा विषम है, वेश्या महापंथ है और स्वस्त्री पंथ है / मल्प रुप वाली परस्त्री को मन में नहीं विचारना क्योंकि वह अपथ्य है, वह रूप के रोग का कारण होती है, शरीर को क्षीण करती है / इन्द्रियों में रसना इन्द्रिय, कर्म में मोहनीय कर्म व्रत में ब्रह्मचर्य व्रत मोर गुप्तियों में मनोगुप्ति कठिनता से जीती जा सकती है। पुष्प, फल का रस, दारू, मांस और स्त्री के रस को जिसने पहचान कर त्याग दिया उन महापुरुषों को मैं वन्दन करता हूँ / देव विमान मिलना सुलभ है परन्तु जीवों को श्री जिनेन्द्र का शासन और बोधि बीज दुर्लभ है / इन धर्मवचनों को सुनकर राजा, मंत्री और कन्या प्रादि ने प्रभावित होकर श्रीचन्द्र को प्रणाम किया / __ चन्द्रसेन ने कहा हे स्वामिन् ! आप मुझे प्राण देने वाले हो मैं आपका सेवक हूँ। हंसावली ने प्रतिबोध पाकर कहा, हे वर ! आपने कामदेव को त्यागा हुआ है। आपके धर्म उपदेश से पाप जीव और धर्म देने वाले हो। अापके कहे अनुसार श्री अरिहंत परमात्मा मेरे देव हैं, उनका फरमाया हुआ, दया मूल धर्म है मौर आप गुरु हैं, सर्व रत्नों में मुख्य शील रत्न मेरे शरीर का प्राभूषण हो जिससे मैं शील वृति P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust