________________ 78 10 भव में गुणचन्द्र के साथ क्या स्नेह था ? भगवान श्री वर्धमान स्वामी ने फर्माया 'पूर्व भव में जो धरण था वह श्री शत्रुजय गिरि पर छठ्ठ. अट्टम के तप और श्री परमेष्ठी मंत्र के ध्यान से दो हत्या के पाप से क्षणवार में मुक्त हो गया जो सिंहपुर में श्रीदेवी थी वह दूसरे भव में मानन्दपुर में सुन्दर श्रेष्ठी की जिनदत्ता पुत्री हुई। वह जिनेश्वर भगवान की धर्म क्रिया में रत थी, अनुक्रम से यौवन को प्राप्त हुई / हृदय में पति की इच्छा वाली कुमारी पिता के साथ संघ लेकर यात्रा के लिये श्री सिद्धाचल तीर्थ पर गई / धरण को तीर्थ की सेवा करते देख जाति स्मरण ज्ञान से पूर्व भव के ज्ञान होने से उसका चरित्र और पूर्व भव का योग जान कर धरण ने उसके साथ क्षमापना कर अनशन लिया। बाल ब्रह्मचारिणी ने संलेखना तप किया, धरण उस तीर्थ की महिमा से गुणचन्द्र हुआ, जिनदत्ता यहां कमलश्री बनी। बाद में बडे ठाठ से विवाह हुआ। वहां दान शालाएं आदि खुलवा कर श्रीचन्द्र वहां के राजा बने / बुद्धिसागर मन्त्री को बहुत ऊंटनियों सहित कुशस्थल प्रतापसिंह रोजा के पास भेजा / और उसे कहा कि कनकपुर में लक्ष्मण मन्त्री का समाचार कह कर कुशस्थल जाना और सारा वृतान्त कह सुनाना / श्रीगिरि में भील ने श्रीचन्द्र राजा को सुवर्ण की खान बतलाई वहां राजा ने श्रीचन्द्रपुर नामक एक विशाल नगर बसाया / श्रीगिरि के बीच के शिखर पर चार द्वार वाला श्रीचन्द्र प्रभु स्वामी का विशाल . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust