________________ *. 62 110 प्रिया उठो, उत्तर न मिलने से मदनसुन्दरी के संथारे पर हाथ फेरत हैं वहां तो मदन पुन्दरी नहीं था। वियोग से दुखी श्रीचन्द्र चारों दिशाओं में निरीक्षण करते हैं परन्तु प्रातःकाल में कहीं पर भी मदन. सुन्दरी के पैर के निशान दिखाई नहीं देते। उन्होंने विचार किया कि मुझे तेज के बहाने भ्रमित पोर मुग्ध करके किसी ने प्रिया का हरण किया है परन्तु वह वहां किस प्रकार रह सकेगी? कोई भी मनुष्य जिसे मन में भी नहीं ला सकता पौर जहां कवि की कल्पना भी नहीं पहुंच सकती वह कार्य पूर्व कृत कम रूपी विधि करती है। अघटित को घटित करती है और सुन्दर वस्तु को बिगाड़ देती है। इस प्रकार विधाता मनुष्यों ने कभी जो सोच। भी / न हो वह कर देता है। जो भाग्य में लिखा हो वही लोगों के सामने : माता है फिर वैसी ही सूझ उत्पन्न होती है। इन सब बातों को सोचकर धीर पुरुष दुख में घबराते नहीं। इस प्रकार उत्सुक चित्त पाले उपाय सोचने लगे। . .... . किसके मनोरथ नहीं टूटते ? सब मनोरथ किसके फले हैं / किसे इस लोक में सम्पूर्ण सुख है ? कौन भाग्य द्वारा खंडित नहीं हुआ ? धूतं लोग भी स्खलना को पा जाते हैं / तत्व को जानने वाले श्रीचन्द्र ने इस प्रकार सोचकर आगे को प्रयाण किया / चलते 2 कनकपुर नगर के पास माये वहां थोड़ी देर के लिये सरोवर की पाल पर वड़ वृक्ष के नीचे थकान मिटाने के लिये सो गये। उसी समय उस P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust