________________ मैं. 580 जिस श्रीचन्द्र ने शून्य नगर को देखकर, नगर में जाकर राक्षस को पर मसलने वाला सेवक बनाया, कुण्डलपुर का राज्य प्राप्त कर चन्द्रमुखी को ब्याहे, स्वनाम से चन्द्रपुर नगर जिसने बसाया, जो राधावेध और धनुर्विद्या में विशारद है। जगत में अजोड़ ऐसे जगत के राजा श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों। प्रतापसिंह राजा के पुत्र श्रीचन्द्र मय को प्राप्त हों। महेन्द्रनगर में त्रिलोचन राजा की जन्म से अन्ध पुत्री की श्रेष्ठ कमल के पत्र जैसी प्रांखें जिसने की वे श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हो।। विद्याधर वन में जिनके मस्तक पर रायण वृक्ष ने दूध बहाया और चन्द्रलेखा को ब्याहे ऐसे श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों। कान्ति नगरी में मदनपाल के लिये अपने बहाने से प्रियं गुमंजरी से परणे सकल स्त्रियों के लक्षणों के जानकार श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों। वह सारी श्रीचन्द्र की कीर्ति सुनकर विस्मित होकर गुणविभ्रम राजा ने पूछा 'हे बारोट / तुम कहां से आये हो ? वह बोला 'मैं कुण्डलपुर नगर से पाया हूँ, मब में अपने भाई के पास वीणापुर नगर को जा रहा हूं। . मदनसुन्दरी भाट के वचन सुनकर बहुत हर्षित हुई और कहने लगी हे नाथ ! आज आपका चरित्र सुना है, उससे पहले ही मेरा चित्त आप पर अनुरागित था / श्रीचन्द्र ने प्रिया से कहा 'श्रीचन्द्र नामके अनेक मनुष्य होते हैं।' मदनसुन्दरी ने कहा 'हे नाथ ! अभी भी आप अपनी मात्मा को प्रदर्शित नहीं कर रहे हैं ? उसका उत्तर उन्होंने हास्य से P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust