________________ 28 4. थे, मंदिर में प्रवेश किया, उसी क्षण नृत्य, संगीत आदि बंद हो गया, क्षण में रोने की आवाज आने लगी और रुदन करती हुई सखिये वाहर भायीं। एक सखी से मदनपाल ने पूछा कि भद्रे ! गीत के स्थान पर रुदन क्यों शुरु होगया ये तो बतायो / सखी ने कहा मुझे समय नहीं है / किसी की तो दाढ़ी जल रही है और कोई दीपक जला रहा है / इतन में दूसरी सखी ने कहा कि हे .बहन जल्दी केले के पत्ते लामो, स्वामिना मूर्तित हो गई हैं। बुद्धिशाली सखी ने कहा कि पहले अपनी स्वामिनी ने कुशस्थल एक सखी को श्रीचन्द्र का अपने ऊपर कितना प्रेम है यह जानने के लिये भेजा था, परन्तु श्रीचन्द्र वहां हैं नहीं जिससे हमारा कार्य सिद्ध नहीं हुआ। उस दुःख से राजकुमारी विलाप करती मूर्छित हो गई है / अब क्या होगा पता नहीं। ऐसा कहकर अन्दर चली गई / बाद में सब लोग नगर में चले गये। - - सूर्यवती के पुत्र श्रीचन्द्र ने विवाह की इच्छा वाले मदनपाल को कहा कि फालतू में तुम अपना राज्य छोड़ घूम रहे हो / अगर इसके बिना तूं नहीं रह सकता है तो जैसे मैं कहूँ वैसा कर, परन्तु तेरे कार्य की सिद्धि घन द्वारा होगी, धन बिना सब निष्फल है / अब किस प्रकार से तेरा कार्य सिद्ध हो सकता है उसे सुन / सखी ने अभी कहा कि कुशस्थल से श्रीचन्द्र देशान्तर गए हुए हैं, तो उसके प्राधार एक प्रपंच करें। तू तो श्रीचन्द्र बन और मैं तेरा सेवक बनता हूं। नगर में जाकर किसी को द्रव्य देकर एक मकान खरीद कर वहां गरीबों को P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust