________________ ( 32 ) ही होगा, तुम इस विषय में कोई चिन्ता न करो," ऐसा कह कर योगिनी ने पुनः योगी से पूछा-खामिन् ! जब श्राप यहां चार सौ वर्ष तक रहे तो क्या आपने यहां से कोई श्राश्चर्य जनक जड़ी बूटी नहीं प्राप्त की। योगी मे "हां" कहते हुए यों कहा इस देश में ऐसा वृक्ष है जिस की जड़ मनुष्य को सुंघाने से मनुष्य कपि (बन्दर) बन जाता है। तथा दूसरी एक ऐसी जड़ी है। जिसे सूंघने से वन्दर भी मनुष्य हो जाता है। __ इसके बाद उसी समय योगी और योगिनी दोनों प्रकार की जड़ियों को उखाड़ कर वहां से चल दिये। __जानते हुए कुमार ने योगी की सब बातें सुनी और वह जड़ी भी देखी। विस्मित कुमार ने भी वे दोनों जड़िये ग्रहण करलीं। कनकवती के. जागने पर कुमार सो गया। तब कुमारी कनकवती कुमार को पोटलो खोल कर देखने लगो। पोटला में पात्र गुथली श्रादि के सिवाये और कुछ नहीं था। इन वस्तुओं को देख कर कुमारी के भाव बदल गये। जिस कुमार को वह अपना प्राण वलभ कहा करती थी उसे ही आज धूर्त जोनने लगी, और बोली-इस ने योगियों का भेस बनाकर व्यर्थ ही मुझे धोखा दिया। वास्तव यह कोई धूर्त योगी है। इसने अपनी चतुराई से मुझे जाल में फंला रक्खा है। कर्मों की विचित्रगति है जो मेरा इस धूर्त योगी से सम्बन्ध हुआ। कुमारी इस तरह विलाप करने और कहने लगी--हे दैवी ! तूने P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust