________________ / 30 ) हे सखी ? यदि तू मेरा कहा माने तो मैं तुझ से एक बात कहती हूं। तू मरती क्यों है ? श्रादमी जीवित रह कर अनेक मङ्गलों को देखता है"। परन्तु कुमारी का निश्चय देख कर वह फिर वोजी-"तरा पतिजीवित है इस लिये कुमारी? तू शोक को त्याग दे"। मालिन की इस बात से कुमारी हर्षित हो कहने लगी-'हे सखो ! मेरा पति यदि जीवित है तो मैं ईश्वर से यह वरदान मांगती हूं कि संसार में कोई न मरे / मालिन ने शपथ पूर्वक कहा कि यदि श्राज रात को कुमार तेरे पास न आया तो तू मृत्युका श्राराधन कर सकती है। मालिन कुमारी को हार देकर अपने घर आई और उसने कुमार से वहां को सव बात कह सुनाई। कुमार के हर्ष का पारावार न रहा उसने उस दिन को एक वर्ष ख्याल करके व्यतीत किया तथा रात्री होते ही कुमार कुमारी के महल में पहुंच गया। . . . जिस तरह मेघों को देख कर मयूरी हर्षित होती है। उसी तरह आज कन करतो कुमारी-कुमार रूपसेन को अपने सन्मुख पोकर हर्षित हुई। "हमें इस समय यहां न रहना चाहिये" ऐसे कह कर कुमार रूपसेन कुमारी को साथ लेकर तथा मालिन के घर से अपनी वस्तुएं ले, मालिन को बिना कहे हो कनकपुर से रवाना हुआ, तथा पाका-प्रयोग से उसी बट वृक्ष पर विश्राम करने के लिये ठहरा। कुमारी तो सो गई परन्तु कुमार जागता रहा / . .. . . . . / PP.AC.Gunratnasurf M.S. Jun Gun Aaradhak Trust