________________ जाने को क्यों कहतो"। अस्तु मालिन के बहुत प्राग्रह पर रूपसेन मालिन के साथ होलिया। मालिन ने कुमार को ले जाकर अपने घर के द्वार पर विठा दिया और बाप अन्दर अपने पति से कुमार के अन्दर श्राने की आज्ञा लेने गई / मालिक अन्दर कुढ़ा बैठा था. उसने तुरन्त ही ताड़ना देते हुए अपनी पत्नी से कहा-दुष्टे? तू अच्छा बुरा कुछ नहीं देखती, जो आया झट घर में ले घुसी। इस पर मालिन ने विनय पूर्वक कहा "स्वामिन् ! श्राप क्रोध क्यों करते हो? यह हमारे अतिथि हैं। इन की कृपा से ही हमारा वाग हरा भरा हुआ है। - दीनार दिखा कर कहा “यह इस कुमार ने दी है"। दीनार को देखते ही माजी के मुंह में पानी भर आया और अपनी स्त्री से बोला तू शीघ्र ही उसे (कुमारको) अपने घर में श्राश्रय दे। माली भो कुमार को अन्दर ले आया और बोला:- .. एह्या गच्छ समाविशासनमिदं प्रीतोऽस्मिते दर्शनात् ... का वार्ता अति दुर्बलोऽसि च कथं कस्माच्चिरं दृश्यते / इत्येवं गृहमागतं प्रगयिनं ये प्रश्रयन्त्यादरःस्तेषां युक्त मशंकितेन मनसा गन्तुंगृहे सर्वदा / " अर्थात् -प्रायो, यहां बैठो, मैं श्राप के दर्शनों से प्रसन्न हूँ . क्या बात है ? देरसे देंखे गये हो और कुछ दुर्बल ... प्रतीत होते हो-इस तरह के वचन जो आदमी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust