________________ * चतुर्थ परिच्छेद * [77 नाम वाले रहते थे। उन दोनों ने लक्ष्मी को कमाने के लिए बहुत उद्योग किये, परन्तु किसी प्रकार सम्पन्न नहीं हुए। क्योंकि लक्ष्मी भाग्यानुसारिणी है / एक दिन समान दुख वाले वे दोनों शोक से निःश्वास पूर्वक यह सोच रहे थे कि हमारा निर्वाह किस प्रकार होगा ? इतने में किसी सज्जन ने कहा कि तुम लोग आशासिद्धि नामक देवी की आराधना लंघन पूर्वक करो तो वह देवी निश्चय रूप से तुम्हारे दारिद्रय का नाश कर देगी। इस प्रकार उसके वचन पर विश्वास कर उन दोनों ने एकाग्र भाव से अपनी इष्ट सिद्धि के लिए 20 उपवास पूर्वक प्राधिना की। तब उस देवी ने प्रत्यक्ष होकर कहा-हे ! हमारे पास क्या देने योग्य या पाने योग्य है जो इस प्रकार मेरे मन्दिर में लंघन कर रहे हो ? उस समय उन दोनों ने विनय पूर्वक कहा-हे / अम्ब ! हम लोग दारिद्रय से दुखी हुए तुम्हारे शरण आये हैं। माता की गोद को शौभित करके बालक चाहे जो मांग / लेता है और वह उसे प्रसन्नता से देवे तो वहां क्या देने .. योग्य, पाने योग्य हैं ? हे अम्ब ! उसी प्रकार हम भी लंबन करके तेरे से यथेष्ट मांगते हैं। तू भी सन्तान की वत्सलता से निश्चय ही देगी। उनके इन वचनों से प्रसन्न हुई देवी ने कहा—हे वत्सों ! तुम लक्ष्मी और विवेक में P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust