________________ 70 ]. * रत्नपाल नृप चरित्र * अज्ञः सुखमाराध्यः सुखतर माराध्यते विशेषज्ञः। ज्ञानलव दुर्विदग्धं ब्रह्मापितं नरं नरंजयति // 1 // अर्थात् अज्ञ सुख से आराध्य है और विशेषज्ञ सुखतर आराधना करने योग्य है। ज्ञान के कुछ भाग से युक्त अर्थात् अर्द्धशिक्षित को ब्रह्मा भी प्रसन्न नहीं करता, अन्य. की तो वात ही क्या ? सर्वज्ञ भगवान् जिनेश्वर के उपदेश वाले सद्धर्म के हृदय में परिपक्व होने पर वह मुग्धभट्ट शने -2 निश्चय श्रावक बन गया / . .. . तदनन्तर आपस में प्रेम पूर्वक गृहस्थ के सुखों को भोगते हुए उन दोनों के गृहस्थाश्रम रूपी वृक्ष का फल -पुत्र समय पर उत्पन्न हुआ। एक दिन शीत काल में मुग्धभट्ट - अपने पुत्र को कमर पर चढाकर शीत से व्याकुल हुआ ब्राह्मणों से भरी हुई हथाई पर अंगीठी तापने के लिए चला गया। वहां बैठे हुए ब्राह्मणों ने “यह अपना धर्म छोड़कर श्रावक बन गया है। इस ईष्या से कहा-हे महा.भाग ! यह धर्मार्थ अंगीठी है, इसके पास मत आओ, नहीं तो तुम्हारा धर्म दषित हो जायगा और तुझे पाप लगेगा। इस प्रकार उपहास की बातें करते हुए विदूषक प्रकृति वाले ब्राह्मणों ने उसे नहीं तापने दिया। इस प्रकार आहेत धर्म के उपहास P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust