________________ 44] * रत्नपाल नृप चरित्र * यह रस चिन्तारनों आदिकों से भी बढ़कर है। हे मित्र ! फिर कभी कार्य होने पर मुझे स्मरण करना। यह कहकर वह देवता विद्युत् प्रकाश की तरह अन्तर्धान हो गया। .... - वहां रहे हुए विद्याधर महावल ने राजा रत्नपाल पर देवता की कृपा देखकर विस्मय किया और विमान में बैठाकर वैताड्य पर्वत पर बसे हुए अपने नगर में ले गया। वहां राजा रत्नपाल ने अपने पुण्य से प्राप्त हुई मनोहर दोनों कन्याओं के साथ महावल से किये हुए उत्सव पूर्वक विवाह कर लिया। महाबल आदि विद्याधरों से विनयपूर्वक सत्कार पाया हुआ नृप रत्नपाल कुछ दिन वहां ठहरा।.... ..... इधर उसी वैताड्य पर्वत पर गगनवल्लभ नामक नगर में वल्लभ नामक महीपाल का हेमांगद नामक बलवान् पुत्र है और समस्त कलाओं में निपुण सार्थक सौभाग्यमंजरी नाम की कन्या है / क्रमसे उसने यौवन को प्राप्त किया। एक बार उसके पुण्य से प्रसन्न होकर कुलदेवी ने दिव्य रत्नजटित सव कामनाओं को पूर्ण करने वाला कंकण उसे दिया। एक बार रात्रि में जिनमन्दिर में सखियों के साथ नाच करती हुई उसके हाथ से वह कंकण कहीं गिर पड़ा। उस दिन से लेकर बालपन से रहित वह वाला सरस आहार को छोड़कर केवल. / / / / / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust 15