________________ 42 ) * रत्नपाल नृप चरित्र के कन्याओं की बात पूरी हो भी नहीं सकी थी कि विद्या के बल से उद्धत वह मातंग उनसे विवाह करने की इच्छा से / वहां पहुंच गया। उस समय वे कन्यायें विचारने लगी कि हाय ! आज हमारे विवाह के निमित्त यह दुरात्मा ऐसे पुरुष रत्न को मारेगा। इस प्रकार कन्यायें विचार कर ही रही थीं, इधर राजा रत्नपाल ने सोचा कि मेरा पता लगने के पहिले ही मैं इसे मार डालं, यह तो क्षत्रियों का धर्म नहीं। इसलिए पहिले इसे में ललकार। राजा इस प्रकार विचार ही रहा था कि वहां किसी हाथी ने आकर अचानक ही उसे सूंड से उछालकर दोनों दांतों से पकड़कर मार दिया। उस समय राजा रत्नपाल यह आकाशगामी हाथी कौन है और - किसलिए इसने इस मातंग को मारा, इस प्रकार आश्चर्य और हर्ष से एक साथ ही भर गया। इधर महाबाहु महाबल अपनी कन्याओं के वियोग से चिन्तित हुआ उनकी खोज के लिए घूमता हुआ उस महल में आ पहुंचा। राजा को और दोनों कन्याओं को देखकर / हर्ष से कहने लगा-मुझे पहिले एक ज्योतिषी ने कहा था कि मातंग विद्याधर से भस्म किये हुए दोनों कन्या रत्नों को जो मनुष्य जिलायेगा, उसकी सहायता के लिए हाथी आकर मातंग को मारेगा, वह तेरी कन्याओं का पति होगा / Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.