________________ * द्वितीय परिच्छेद *: [26 राज्य भी फिर मिलेंगा, इस बचन के विश्वास से वह किसी प्रकार जीवित रही। . नि .. राजमहल में तो ये घटनायें घटित हो रही थीं और दूसरी तरफ जब राजा रत्नपाल की निद्रा भंग हुई तब उसने ... अपने को घने जंगल में पाया। मनुष्य के प्रचार से रहित अनेक हिंसक जानवरों से पूर्ण उस वन को देखकर मन में सोचने लगा-क्या मैं यह स्वप्न देख रहा हूं अथवा यह इन्द्रजाल है या मेरा बुद्धि विपर्यय हो गया ? जो अनेक प्रकार मांगलिक वाद्य और वन्दीजनों के मनोहर स्वर सेशोभित सब इन्द्रियों को सुख देने वाला देवलोक के गृह के सदृश मेरा राज प्रासाद कहां है और अनेक काक, उल्लू, भालू आदि हिंसक प्राणियों के भयंकर शब्दों के कोलाहल से व्याप्त यमराज के स्थान की भांति भयंकर यह स्थान कौन सा है ? ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य के लोभ से दुरात्मा मन्त्री ने विश्वस्त मुझे इस दुःखरूपी समुद्र में पटका है। सोते हुए के उत्संग में चढ़कर आज हाय ! उसने मेरा गला मरोड़ दिया / अथवा महान् खड्ड में डालकर मेरी रस्सी काट दी। हाय ! वंश परंपरा से आये हुए मेरे भक्त, दान और मान से सत्कृत ऐसे राज्य के प्रधान पुरुषों को उसने अपने कैसे बना लिये ? अथवा मुंहमांगे धन से प्रसन्न किये हुए मेरी ,P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust