________________ , 26 ] . * रत्नपाल नृप चरित्र * देकर बड़े 2 राजाओं को पुत्र और भाई के साथ शीघ्र ही भस्म कर देती हैं। इस सती प्रभाव के विषय में मैं एक दृष्टान्त कहता हूं, उसे आप सुनो। .. किसी समय रत्नपुर नामक नगर में सार्थेश धनसार के धनश्री नामक प्राणप्रिया थी। एक दिन वह रूपवती, सौभाग्यशालिनी झरोखे में बैठी हुई थी। किसी दुराशय विद्याधर नरेन्द्र ने उसको देख लिया और रागान्ध होकर उससे प्रार्थना की, - परन्तु उसकी सैंकड़ों खुशामद से भी वह सती नहीं मानी। तब कामदेवरूपी स्मरापस्मार' से मोहित मन वाले उस विद्याधर ने उसके शील को नष्ट करने के वास्ते विद्याबल से प्रयत्न : किया। तव क्रोधित होकर उसने शाप दिया-'हे पापी ! तू पुत्र और सात अंग वाले राज्य के साथ क्षय को प्राप्त हो।' तदनन्तर विद्याधर बोला कि इस समय दिन है, मैं रात्रि में आकर तुझे. हरण करूगा, फिर जो भावी होगी सो होओ। तब उस सती ने कहा कि आज मेरे कथन से ही सूर्य अस्त. होगा अन्यथा नहीं। यह सुनकर वह दुष्टाभिप्राय विद्याधर जब अपने नगर में गया, तब उसका पुत्र अकस्मात् हृदयशूल से पीड़ित होकर मर गया और हाथी घोड़े भी मर गये, शेष रहे हुए 1. बाण P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust