________________ * रत्नपाल नृप चरित्र खान के तुल्य इस कन्या को इससे छीनकर हमारे में से किसी को दे दो। जिस प्रकार गधे को मणिमाला शोभित नहीं कर सकती, उसी प्रकार इस शृंगारसुन्दरी को इस बातक को देना हम बरदास्त नहीं कर सकते / " तब बीरसेन ने कहा कि-हे महानुभावों ! स्वयम्वरमण्डप में बहुत से राजा लोग बड़े 2 मनोरथ लेकर आते हैं, परन्तु उनमें से एक ही अपने पूर्वभव के पुण्य से कन्या को विवाहता है। शेष लोग तो अरुष्ट असन्तुष्ट मन वाले जैसे आये वैसे ही चले जाते हैं। इस सर्वसिद्ध व्यवहार को जानने वाले आप लोगों को रोष तोष नहीं करना चाहिए। फिर यह कार्य तो भाग्य के अधीन हुआ करता है। किसी विद्वान् म ठीक कहा है- . ___ अवाक् दृष्टितया लोको यथेच्छं वाञ्छते प्रियम् / . भाग्यापेक्षी विधिदत्ते तेन चिन्तित मन्य था // 1 // .. इस प्रकार वीरसेन राजा के कहने के बाद राजकुमार रत्नपाल कहने लगा-हे राजाओं ! मेरे कन्या के वरण करने पर क्रोध नहीं करना चाहिए, किन्तु दौर्भाग्य देने वाले अपने भाग्य पर क्रोध करो। यह सुनकर विशेष स्फुरायमान क्रोध वाले सब राजा लोग तत्काल कन्या के वर को मारने के लिए सजित हुए। उस समय विषादग्रस्त राजा वीरसेन P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust