________________ रखते" ऐसे महात्मा लोग आकर हाथ फैलाते हैं। इस सुपात्र दान का जो फल है, उसे बुद्धिमान् लोग जानते हैं तथा शास्त्रगम्य है। - इस पुस्तक में दान के माहात्म्य पर रत्नपाल नृप की कथा शब्दबद्ध की गई है। पूर्वभव में उसने साधुओं को भाव पूर्वक प्राशुक तंदुल जल का दान दिया था। उसके प्रभाव से इस भव में समृद्धिशाली राज्य की प्राति हुई। शील के विषय में सिद्धदत्त और धनदत्त की कथा है। धनी सिद्धदत्त का शील के अज्ञान के कारण जो ह्रास हुआ और ज्ञानवान् शील सम्पन्न धनदत्त शीलता के प्रभाव से उन्नति के शिखर पर पहुंचा। उसका वर्णन बड़ी खूबी के साथ किया गया है। साथ में तप का भी वर्णन है, जिसके प्रभाव से ही देवी ने प्रसन्न होकर वरदान दिये थे। इसके सिवाय अन्य भी कई महत्वपूर्ण उपदेश हैं कि मनुष्य को अपने सुदिन और कुदिन की परीक्षा करके कार्य करना चाहिए ताकि हानि न उठानी पड़े। अधिक कंजूसी के विषय में शृङ्गदत्त की सुन्दर कथा लिखकर यह दिखाया है कि लोभी मनुष्य इहलोक और परलोक के सुख को न पाकर अपना जन्म व्यर्थ ही व्यतीत करता है। 5. इस सुन्दर और जीवन को सुधारने वाली पुस्तक का भाषानुवाद करके विद्याप्रेमी सुरेन्द्र मुनि ने लोकोपकार किया है। मुझे विश्वास है कि इस अनुपम पुस्तक का हिन्दी अनुवाद होने से हिन्दी भाषा-भाषी बहुत लाभ उठावेंगे और यह हिन्दी अनुवाद हिन्दी प्रेमियों का जीवन पथप्रदर्शक सिद्ध होगा। विक्रम सं० 2011 आसोज कृष्णा 15 सुन्दरमुनि, दुजाणा का P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust