________________ * चतुर्थ परिच्छेद : [115 पर बिठाकर और उसे राजनीति की शिक्षा देकर समस्त जन-समुदाय में जिनमत के उद्योत को करने की इच्छा से अपनी स्त्रियों के साथ अष्टान्हिका महोत्सव करके, दीनदुखियों को दान देता हुआ अपने पुत्र द्वारा किये हुए महोत्सव पूर्वक महासेन नामक मुनि के पास दीक्षा ग्रहण करली। वह शुद्ध चित्त होकर निरतिचार चारित्र का पालन करने लगा और कठिन तर करके समय पर समाहित मन से मर कर देवलोक में महान् देवता हुआ। वहां बहुत काल तक स्त्री के साथ अद्भुत देवसम्पत्ति को भोगकर महाविदेह में मनुष्यभव पाकर शीफ़ ही सिद्ध होगा। उज्वल दान निःसीम समृद्धि का कारण है, ऐसा मानकर शुद्ध मन से सज्जनों को उसमें प्रयत्न करना चाहिए। तपागच्छाधिराज श्री सोम सुन्दर सूरि पट्ट प्रभावक गच्छनायक युगप्रधान श्री मुनि सुन्दर सूरि विनेय वाचनाचार्य सोम मण्डन गणि कृता सत्पात्र पानीय दाने श्री रत्नपाल नृप कथा समाप्ता॥ . P.P.AC. Gunrathasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust