________________ * चतुर्थ परिच्छेद *. [113 है और दूसरा-संसार जगे हुए को दीखता है, यह फर्क है। प्रतिक्षण नष्ट होता हुआ यह शरीर मालूम नहीं होता। पानी में डाले हुए कच्चे घड़े की तरह बिखरने से मालूम होता है। आयु नाक के अग्र भाग में चलने वाले श्वास के बहाने से शीघ्र भागने के लिए अभ्यास किया हुआ सा प्रतीत होता है। जिनसे हम उत्पन्न हुए, उनको गये तो बहुत काल हो गया। हमारी समान अवस्था वालों को जाते हुए देखकर भी यह आत्मा अनाकुल है, यह बड़ा खेद है। यदुक्तम्:- . . वयं योभ्यो जाता श्विर परिगता एव खलुते / समं यैः संवृद्धाः स्मृति विषयतां तेऽपि गमिताः॥ इदानी मेते स्म प्रतिदिन समापन्न पतना। गता तुल्यावस्थां सिकतिल नदी तीर तरुभिः // 1 // . विषय बहुत समय तक रहकर भी बुढ़ापे में चले जायेंगे, इसमें कोई सन्देह नहीं। स्वयं छोड़े हुए ये विषय बहुत सुख देने वाले होते हैं / कहा है: अवश्य यातारश्चिरतर मुषित्वाऽपि विषयाः। .... वियोगे को भेदस्त्यजति न जनो यत्स्वयममून् / व्रजन्तः स्वातंत्र्यात् अतुल परितापाय मनसः। स्वयं त्यक्ता ह्य ते शम सुखमनन्तं विद्धति // 1 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust