________________ 18] * रत्नपाल नप चरित्र होता है, अन्य नहीं। इस सबुद्धि के उदय से उसने उन रत्नों को नहीं लिया। तब महाजनों ने राजा के पास जाकर धनदत्त का सारा वृत्तान्त सुनाकर रत्न दे. दिये। उस. राजा ने उसकी निर्लोभता देखकर प्रसन्नता से वे रत्न धनदत्त को दे दिये / राजा के देने पर धनदत्त ने वे रत्न प्रसन्नता से ले लिये और पांच स्वर्णकोटि में उनको बेच दिये। .. - पूर्व पुण्य से प्रेरित हुआ सुदिन जो शुभ करता है, मनुष्यों का वैसा शुभ तो माता-पिता, भाई तथा स्वामी भी नहीं कर सकता। उसी प्रकार दुष्कर्म से उपस्थित कुदिन जैसा घोर कष्ट देता है, वैसा कष्ट रुष्ट हुए व्याल-वैताल भी नहीं दे सकते। किसी तिथि में समुद्र भी बढ़ता है और किसी तिथि में वही समुद्र घटता है। सुदिन और कुदिन की की हुई विशेषता साफ नजर आती है। एक पक्ष में चन्द्रमा वृद्धि को प्राप्त होता है. और दूसरे पक्ष में वही घटता है। यह सुदिन और कुदिन का फल देवताओं में भी दिखाई पड़ता है तो मनुष्यों की क्या गिनती ? 'व्यापार व्यवसाय आदि और उससे भी बड़े काम को जो मनुष्य करना चाहता है वह पहिले अपने सुदिन कुदिन की परीक्षा करता है। इस प्रकार सोचकर उसने अपने सुदिन तथा कुदिन की जाँच करने के लिए बड़ा व्यापार करने की इच्छा वाले उसने P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust