________________ * चतुर्थ परिच्छेद * नीचा वचन कहकर रुष्ट कर दिया है ? अथवा यह बीमार हो गया है ? इन बातों का निर्णय करने की इच्छा वाले उस कपटी धूर्त महाजन ने अपने हाथ से उसे उठाकर अश्रपूर्ण नेत्र से गद्गद् स्वर से कहा। तू मेरे चारों पुत्रों से भी अधिक प्रेम-पात्र पंचम पुत्र है / आज तेरी यह कैसी हालत है ? हे वत्स ! कहो, तू ऐसा क्यों हो गया ? उस श्रेष्ठी की इस प्रकार स्नेह भरी वाणी से पिघले हुए दिल वाले उस नौकर ने उन बहुओं का जो वृत्तान्त देखा था, वह सब सेठ को कह सुनाया। उस अनोखे हाल को सुनकर स्क्यं देखने को उत्सुक हुए सेठ ने उस दिन को वर्ष के समान माना। तदनन्तर 'समीप है मरण काल.. जिसका' ऐसा वह वृद्ध कृपण सेठ नौकर की तरह रात्रि में छिपकर उस काष्ठ के कोटर में प्रविष्ट होकर बैठा रहा / उस रात में भी पहिले की तरह वे पुत्रवधुएँ उस काष्ठ पर चढकर आकाश मार्ग से स्वर्ण द्वीप में जाकर उस काष्ठ को छोड़कर नगर में गई। उस समय लोभी उस सेठ ने कोटर से बाहर निकल कर अनेक सोने की ईटों से उस काष्ठ के कोटर को भर दिया। प्राप्त हुए द्रव्य के उपाय से प्रसन्नचित्त वह सेठ, वधू के आगमन काल में पहिले की भांति कोटर में छिप रहा / अपना काम कर वे स्त्रिये वहां आकर शीघ्र उस P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust