________________ * चतुथ परिच्छेद * [81 इस वृत्त को जानने की इच्छा वाला और कौतुक को देखने का अभिलापी वह रात्रि में उस काष्ठ के गहर में चुपचाप छुप रहा। वे बहुएँ सदा की भांति उस काष्ठ पर चढ़कर उस रात भी आकाश मार्ग से स्वेच्छा पूर्वक विहार करके स्वर्ण द्वीप से घर आ गई / छुपा 2 वह भी यथा स्थित उनका सारा वृत्तान्त जानकर दो स्वर्ण की ईटों को लेकर वहां आकर सो गया / . उनके उस अनोखे चरित्र से विस्मित हुआ वह नौकर सोचने लगा कि नारी अबला और भोली, तथा विष नधुर कहा जाता है। मैं तो यह मानता हूँ कि ये विपरीतता से उत्पन्न हुए लक्षण का दृष्टान्त है / भोली स्त्रियों से भी बड़े बड़े चतुर लोग ठगे जाते हैं। अबलाओं से बड़े 2 शूरवीर जीते जाते हैं। ये स्त्रियें "द्वार पर बैठा हुआ सेठ हर समय हमारी रक्षा करता है" इस ईर्ष्या से ही अपनी विद्या से सर्वत्र स्वेच्छा पूर्वक विहार करके घर आ जाती हैं / उच्छृङ्खल मन वाली स्त्रियों के लिए बाहरी रक्षा विधान व्यर्थ है। क्योंकि लोक में भी ऐसा कहा जाता है-हे मूढ ! स्त्रियों का मन नहीं बाँधा गया, केवल कम्बल बाँधने से क्या ? उनकी स्वेच्छा प्रवृत्ति में बिचारा कम्बल क्या बल कर सकता है 1. किसी महाकवि ने कहा है: P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust