________________ * चतुर्थ परिच्छेद के [85 पर हाथ दिये रहता था। इस प्रकार वह प्रायः छ' दानों को देता था, तो भी अदाता प्रसिद्ध था। क्योंकि यश पुण्य से ही मिला करता है। याचकों के लिए द्वारपाल की तरह वह याचकों को द्वार में घुसने नहीं देता था। और असूया से पुत्रबधुओं को भी घर से निकलने नहीं देता था। इस संसार में विधि ने दाताओं के गुणों को प्रकाशित करने के लिए ही मानो राजा, चोर और धनवानों का उस कृपण को कोषाध्यक्ष बनाया हैं। इस पूर्वोक्त प्रसंग पर नीति शास्त्र में जो कहा है, वह इस प्रकार है: विना कदयं दाताऽपि नाभविष्यत् प्रसिद्धिभाक् / निशां विना कथं नाम वासरोऽयमितीष्यते // 1 // - अर्थात्-बिना कंजूस के दाता प्रसिद्ध नहीं होता, रात्रि के बिना “यह दिन है" ऐसा कैसे कहा जा सकता है ? अतः संसार में दानी-अदाता, धनी-निर्धन, लाभहानि, छोटा-बड़ा आदि भाव अपेक्षाकृत हैं। धीरे धीरे उसका घर मलेच्छ के घर की भांति अस्पृश्य, चांडाल के 1. धक्के धुमे, थप्पड़ आरि P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust