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________________ P.P.Ad Gurvalasur MS. | हे द्विज-पुत्रों! मैं इस भरी सभा के समक्ष ही तुम दोनों के भवान्तर का वर्णन करूँगा।' ब्राह्मण-पुत्रों के क्रोध का पारावार न रहा। वे कुपित होकर कहने लगे-'रे दिगम्बर शठ! यदि तू जानता है, तो अवश्य कह।' मुनि ने समस्त सभा को सम्बोधित कर कहा-'मैं इन दोनों ब्राह्मणों को भवान्तर को कथा कहता हूँ, जो सप्रमाण एवं विश्वनीय है, अतः आप लोग ध्यान देकर उसका श्रवण करें- इसी शालिग्राम में प्रवर नाम का एक सम्पन्न ब्राह्मण रहता है। एकमात्र खेती ही उसकी जीविका का आधार है। उसके खेत के समीप एक वट वृक्ष है, जिसके नीचे दो श्रृगाल रहते थे। वे शवों का मांस भक्षण कर अपना जीवन व्यतीत करते थे। एक दिन वह प्रवर ब्राह्मण (किसान) हलादि खेती का समान ले कर अपने खेत की ओर जा रहा था। उसके साथ अनेक सेवक भी थे। मार्ग में उसने आकाश की ओर दृष्टि फैरी, तो वर्षा की सम्भावना समझ में आयो। आकाश के इस छोर से उस छोर तक घोर कृष्णवर्णी मेघ दिखलाई दे रहे थे, जो गर्जना करते हुए रङ्गीन इन्द्रधनुष-सा अङ्कित कर रहे थे। उन्हें देखने से प्रतीत होता था कि मानो वे ग्रीष्म ऋतु को प्रताड़ित कर रहे हैं। वायु के झकोरों के साथ मेघ-गर्जना का मिश्रित प्रभाव पृथ्वी को कँपाकँपा दे रहा था। शीघ्र ही वर्षा होने लगी, जिससे उस ब्राह्मण का सर्वाङ्ग भीग गया। उसके हाथ-पाँव ठण्डे पड़ रहे थे। सेवक भी भयभीत हो कर खेती का सामान वहीं पटक कर पलायन कर गये थे। वह भी निरुपाय हो कर बड़ी दुःखी हुआ एवं अपने घर लौट आया। पर वृष्टिपात नहीं थमा तथा निरन्तर कई दिवस पर्यन्त प्रचण्ड मेघवर्षा होती रही। लोगों का घर से बाहर निकलना भी दूभर था। जीविका के साधन के अभाव में लोग भूखों मरने लगे। श्रृगाल का जोड़ा भी भूख से व्याकुल था। जब आठवें दिन वर्षा का प्रकोप धीमा पड़ा, तो वे श्रृगाल बाहर निकले। उन्हें खेत में भींगी हुई रस्सी मिली। अपनी भूख को कठिन ज्वाला मिटाने के लिए वे उसे खा गये, जिससे उनके उदर में सांघातिक शल-वेदना उठी एवं वे मरण को प्राप्त हुए। उन्हों श्रृगालों के जीव तुम दोनों भ्राता हो। तुमने सोमशर्मा ब्राह्मण के यहाँ जन्मग्रहण किया है। पूर्व-जन्म श्रृगाल इस जन्म में ब्राह्मण हुए, इससे स्पष्ट है कि संसार में न किसी जीव की जाति उत्तम है एवं न किसी की नीच। मुझे माश्चर्य होता है कि जीव अपना भोग तो देखता नहीं, व्यर्थ में अमिमान कर बैठता है। || तनिक विचारो, पूर्व-जन्म में श्रृगाल को पर्याय से मृत्यु प्राप्त कर ये ब्राह्मण-पुत्र हुए एवं आज अभिमान में चूर Jun Gun A W 3 Trust
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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