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________________ 53 P.P.Ad Gunvatasun MS उसका लालन-पालन विद्याधर-नृपति के महल में हुआ एवं कालान्तर में वह ज्ञान-वैभव से विभूषित हो कर अपने माता-पिता से आ कर मिला। उसी प्रकार तेरे पुत्र का भी समय आने पर तुझ से समागम होगा, इसमें किंचित्-मात्र भी संशय नहीं है।' नारद के समझाने से रुक्मिणी का शोक मन्द हुआ। उसने कहा-'हे प्रभु ! मैं आप से एक विनम्र निवेदन करना चाहती हूँ, जिसे कृपा कर ध्यान से सनें। हमारे अश्वारोहियों ने समस्त भूतल का अन्वेषण किया, किन्तु कहीं भी कोई सूत्र नहीं मिला। मुझे भाप के कथन पर पूर्ण श्रद्धान है, क्योंकि आप का कथन कभी मिथ्या नहीं हो सकता। हे भगवन् ! मुझे आप के दर्शनों की उसी प्रकार अनन्य लालसा थो, जैसे ग्रीष्म ऋतु में तृषित हरिण मेघराशि की ओर टकटकी लगाये रहते हैं। मेरे पुण्योदय से ही इस महल में आप का आगमन हुआ है।' नारद ने पुनः समझाना भारम्भ किया—'अब चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं हैं। मैं स्वयं प्रयत्न करूँगा, फिर भी होगी बलवान होती है। मैं समस्त संसार का बारम्बार भ्रमण कर तेरे पुत्र को ढूंढ़ लाऊँगा। मैं तो स्वतःभ्रमण करता रहता हूँ। अतः इसमें मुझे कोई परिश्रम या खेद नहीं होगा, वरन् प्रसन्नता हो होगी। यदि तेरे कार्य के लिए मुझे भ्रमण करना पड़े, तो मुझे कष्ट कैसा ? ढाई द्वीप में ऐसा कोई भी स्थान नहीं,जहाँ मैं न पहुँच सक। मैं समग्र लोक में भ्रमण कर तेरे पुत्र का अन्वेषण करूंगा।' नारद के आश्वासन देने पर भी रुक्मिणी ने कहा-'हे नाथ / उसका अन्वेषण करना बड़ा ही दुष्कर है। मैं बड़ो अभागिनी हँ। अपने शिशु को वाणी भी मुझे सुनने को नहीं मिल पा रही है। फिर भी लमय हों। रुक्मिणी को कातर होते देख कर नारद ने कहा- 'हे पत्रो। मैं सत्य कहता हूँ। किसी पर्वने ही तेरे पुत्र का अपहरण किया है। यदि मैं तेरे पुत्र का सम्वाद न ला दूँ, तो मुझे मिथ्यावादी समझना।। च अतः शोक त्याग कर सावधानीपूर्वक धैर्य धारण करो। केवलज्ञानी अतिमुक्तक तीन लोक के पदार्थों के ज्ञाता थे, किन्तु वे तो अघातिया अष्ट कर्मों का विनाश कर मोक्ष को गये। वैसे मति-श्रुति एवं अवधि अर्थात तीन ज्ञान के धारीभावी तीर्थङ्कर नेमिनाथ भी सत्यासत्य का विवेचन करनेवाले हैं, किन्तु वे इस बारे में कुछ बोलेंगे ही नहीं। इसलिये मुझे संसार-प्रसिद्ध स्थान पूर्व-विदेह में जाना पड़ेगा। वहाँ पुण्डरीकिणी नाम की एक रमणीक नगरी है, जहाँ सीमंधर स्वामी समवशरण में विराजमान हैं / मैं वहाँ का कर भाान को भक्तिपूर्वक ND
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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