________________ ACC NO: P.P.Ac Granas MS 345001 तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने किसी व्यक्ति से कारण पूछा, तब ज्ञात हुआ कि रानी रुक्मिणी के पुत्र का अपहरण हुआ है, इसलिये शोक में द्वारावती की यह दशा है। ऐसा कठोर एवं दुःखदायी समाचार सुन कर नारद को जो अपार वेदना हुई, वह अकथनीय थी। उनका हृदय मानो विदीर्ण हो गया, वे अचेत होकर धराशायी हो गये। कुछ काल पर्यन्त तो वे अचेत ही रहे, किन्तु जब उपवन में मन्द शीतल वायु का सञ्चार हुआ, तो उनकी मूळ दूर हुई। पर वे मति-शून्य हो गये थे। अल्प विश्राम कर वे राज-प्राङ्गण की ओर अग्रसर हुए। उन्हें आते हुए देख कर श्रीकृष्णनारायण भी उत्तिष्ठ हो गये एवं नमस्कार कर उन्हें उत्तम आसन पर विराजमान किया। वे शोक प्रकट करने लगे। नारद भी दुःखी होकर बैठ गये। कुछ काल पश्चात् अपनी मनोव्यथा को सँभाल कर वे श्रीकृष्ण को समझाने लगे-इस स्थान पर आचार्यों का कथन है कि जिनेन्द्रदेव ने जिस स्थाद्वाद-वाणी का निरूपण किया था, नारद उसके परम ज्ञाता थे। उन्हें सप्ततत्वों का ज्ञान था एवं अन्य को शिक्षा देने में वे पूर्ण निष्णात थे। फिर भी वे श्रीकृष्ण के दुःख से दुःखी हो रहे थे। इसलिये माना जाता है कि मोह की लीला भी विचित्र होती है। नारद ने कहा- 'हे नारायण! मेरे कथन को ध्यान देकर सुनो। मैं वही कहूँगा, जिसे सर्वज्ञ जिनेश्वर देव ने कहा है / इस संसार में प्राणीमात्र का एक-न-एक दिवस अवश्य विनाश हो जाता है, इसलिये शास्त्रों के मर्म के ज्ञाता को शोक करना कदापि उचित नहीं। वृथा चिन्ता करने से विलुप्त वस्तु प्राप्त नहीं होती। यदि मृतक व्यक्ति की ही चिन्ता की जाए, तो क्या वह जीवित हो सकता है ? जिन महापुरुषों ने इस संसार को असार एवं क्षण-भंगुर समझ कर सर्वथा त्याग दिया है, वे धन्य हैं। उन्हें न तो माता-पिता का, न पुत्र का, न अन्य किसी के वियोग का दुःख होता है एवं न ही संयोग से कोई प्रसन्नता का अनुभव होता है। वे सदा निर्लिप्त रहते हैं / यद्यपि मैं ने सांसारिक सुखों को त्याग दिया है एवं वनवासी हूँ, देशव्रत एवं संयम का धारण करनेवाला हूँ तथापि तुम्हारे स्नेहवश मैं आज दुःखी एवं सन्तप्त हो रहा हूँ। कारण यह है कि जीवधारियों को बन्धुजनों के सुख में हर्ष एवं कष्ट में दुःख का अनुभव होता है। हे नारायण! तुम्हें पुत्र वियोग में सन्तप्त पा कर मेरा हृदय विदीर्ण हो रहा है। मैं अपने जीवन को निरर्थक समझता हूँ। भला ऐसा कौन होगा, जो अपने स्वजनों एवं मित्रों के कष्ट में दुःखी न हो। तुम्हें समझना चाहिये कि जिस प्रकार मैं दुःखी हो