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________________ P.P.AC.Sumanas श्रीकृष्ण मेरे भक्त-किङ्कर बनें। मुझ में उनका मन आसक्त रहे। वे रुक्मिणी से सर्वथा विरक्त हो जायें। मेरी || मनोकामना है कि मैं अपने पति के मनोप्रदेश पर एकछत्र राज्य करूँ।' हे देवी यदि वरदान देने में आप ने विलम्ब किया, तो अभी रुक्मिणी के साथ श्रीकृष्ण ना जायेंगे एवं मेरा मनोरथ पूर्ण न हो सकेगा। अतः || 34 यथाशीघ्र मेरी इच्छा पूर्ण करो। मेरी अभिलाषा है कि जिस प्रकार नथा हुआ बैल रस्सी खींचने से पीछे-पीछे चला आता है ; उसी प्रकार श्रीकृष्ण भी मेरा अनुसरण करें। हे माता! मैं आप से वरदान की याचना करती हूँ। आप रुक्मिणी एवं श्रीकृष्ण में सम्बन्ध-विच्छेद करा दें।' ____ इस प्रकार प्रलाप करती हुई सत्यभामा ने अपना मस्तक वन-देवी के चरणों में नत कर दिया। वन-देवी बनी रुक्मिणी प्रस्तर-प्रतिमावत निश्चल एवं मौन थी। उसने कोई उत्तर नहीं दिया। सत्यभामा को सारी लीला श्रीकृष्णनारायण देख रहे थे। उपयुक्त समय जान कर वे कुन से बाहर निकले। सत्यभामा से दृष्टि मिलते ही उन्होंने हँसना प्रारम्भ किया एवं बारम्बार ताली पीटने लगे। वे सत्यभामा को चुटकियाँ लेते हुए कहने लगे-'हे प्रिये ! क्या तुम्हें रुक्मिणी के चरणों की पूजा से मनोवांछित वर प्राप्त होंगे? तुम्हें यदि उसकी आराधना से ही सौभाग्य की प्राप्ति होगी, तो तुम उसे उपेक्षा की दृष्टि से क्यों देखतो हो ? तुम्हें वृथा अपने ऊपर अभिमान क्यों होता है ? अब तो अष्ट-द्रव्य से उसकी पूजा करो, तभी मैं तुम्हारा दास बनूँगा।' इस प्रकार सत्यभामा का उपहास कर वे उच्च-स्वर में बद्रहास करने लगे। __ अब सत्यभामा की समझ में ना गया कि जिसे वह वन-देवी समझती थी, वो कोई देवी नहीं किन्तु साक्षात रुक्मिणी ही है। अपनो मन्द बुद्धि पर उसे खेद हुआ। वह लज्जित एवं संक्लशित हुई, किन्तु यत्नपूर्वक | उसने अपने क्रोध को प्रकट नहीं किया। वह चतुरतापूर्वक बोली-'हे मूर्ख शिरोमणि! आप सचमुच गोपाल ही हो। गोपाल (गाय चरानेवाले) की चेष्टाएँ ऐसी ही होती हैं, अन्यथा कोई विवेकी आपके सदृश मूर्खतापूर्ण कार्य नहीं करेगा। मैं तो विधि को मूर्ख हो समर्मंगो, जिसने आप के सदृश अविवेकी को तीन खण्ड का राज्य दे दिया। हे मूढ़मति ! इसमें उपहास की कौन-सी वस्तु है? यदि मैं ने रुक्मिणी को अपनी भगिनी मान कर नमस्कार हो कर लिया, तो कौन-सा अपराध हो गया? आप तो अन्य का ही दोष देखते हो। तनिक यह भी तो सोचो कि जहाँ दो नारियाँ एकत्रित हों, वहाँ किसी पुरुष का आगमन क्या उचित है ? जो आपके Jun Gun Aaradha
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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