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________________ 18 PP Ad Guntasun MS को नहीं। यदि स्त्रियों में रमण की उत्कट अभिलाषा हो, तो रुक्मिणी को प्राप्त करें। जिस प्रकार पूर्णिमा की तुलना में अन्य किसी रात्रि की शोभा नहीं, उसी प्रकार एक रुक्मिणी के अभाव में आप के अन्तपुर की शोभा नहीं-चाहे आप के महल में सहस्रों रूपवती रानियां क्यों न हो ?' इस प्रकार श्रीकृष्ण के चित्त पर वाँछित प्रभाव डाल कर नारद ने वहाँ से प्रस्थान किया। उनके गमनोपरान्त श्रीकृष्ण अचेत हो गये / बन्धुषों के उपचार से उनकी मूर्छा का निवारण हुआ। वे विचार करने लगे कि यह सुन्दरी कैसे प्राप्त हो? किन्तु उन्होंने किसी से अपना मनोभाव प्रकट नहीं किया। चैतन्य अवस्था में अब उन्हें न तो क्षुधा-पिपासा लगती थी एवं न हो निद्रा आती थी। संयोग से श्रीकृष्णनारायण जिस समय रुक्मिणी के लिए चिन्तातुर थे, उसी समय रुक्मिणी के यहाँ भी एक विचित्र घटना हुई। जब चतुर शिशुपाल ने लग्न शुधवाया, तो रुक्मिणी चिन्तित हो उठी। उसने अपनी बुआ से प्रार्थना की कि यदि श्रीकृष्ण से उसका सम्बन्ध न हुआ एवं उनके चिर-वियोग का सामना करना पड़ा, तो उसे जीवित न देख सकेंगी। बुआ ने आश्वासन दिया कि व्यर्थ में विषाद मत करो। वह (बुजा) उस (रुक्मिणी) की अभिलाषा पूर्ति के हेतु प्रयत्न करेगी। तत्पश्चात् बुआ एवं रुक्मिणी ने एक विश्वासपात्र नवयुवक दूत को बुलाया। जिस जिसका नाम कुशल था। बुआ ने समस्त वृत्तान्त उसे समझा दिया। रुक्मिणी ने एक प्रेम-पत्र दे कर उसे श्रीकृष्ण के यहाँ गमन हेतु विदा किया। दूत को कुण्डनपुर से निकलते ही अनेक प्रकार के शुभ शकुन मिले, जिनसे वह प्रफुल्लित हो उठा। द्वत 'कुशल' जब द्वारिकापुरी में जा पहुँचा, तो उसे महती आश्चर्य हुआ। वह सोचने लगा-'यह तो | साक्षात् इन्द्र की अमरावती है, पर पृथ्वी पर कैसे आ गयी?' वह प्रसन्न चित्त से उस पुरी को सुन्दरता देखते || हुए राजद्वार की ओर अग्रसर हुआ। उसने राजद्वार पर पहुँच कर द्वारपाल से कहा कि महाराज श्रीकृष्ण को मेरे आगमन की सूचना दो। द्वारपाल ने जिज्ञासा की—'तुम कहाँ से आ रहे हो, कौन हो एवं किसने भेजा है ?' उसने तत्क्षण उत्तर दिया- 'मैं एक विदेशी हूँ। मेरे स्वामी ने मुझे भेजा है। तुम महाराज श्रीकृष्ण से निवेदन करो कि दूत एक प्रेम-सम्बन्धी कार्य हेतु भाया है।' द्वारपाल ने राजा के निकट जाकर दूत का | सन्देश कह सनाया। श्रीकृष्ण ने तत्काल आज्ञा दी कि दुत को उनके सम्मुख प्रस्तत किया जाए। माज्ञा के Jun Gun Aaradhak Trust 18
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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