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________________ 261 सब ने आनन्दपूर्वक केवली भगवान को नमस्कार किया। अक्षतादि गन्ध, धूप, नैवेद्य, मनोहर फलादि तथा नृत्य, गीत, वीणा, बाँसुरी, मृदङ्ग आदि का वादन कर भगवान की पूजा की गयी। तत्पश्चात् सब लोग धर्म का श्रवण कर अपने-अपने स्थान को लौट गये। योगिराज प्रद्युम्न तीर्थङ्कर भगवान श्री नेमिनाथ के सङ्ग विहार के लिए निकले। वे विहार करते हुए | वल्लभ देश में जा पहुँचे / आर्थिका संघ भी राजमती के नेतृत्व में उसी देश में आ पहुँचा। इस प्रकार भगवान श्री नेमिनाथ एक बड़े सङ्घ के साथ विहार करने लगे। यहाँ एक अन्य कथा प्रारम्भ होती है द्वीपायन मुनि का प्रसंग पूर्व में आ चुका है। उन्होंने द्वारिका के नष्ट होने की अवधि द्वादश वर्ष बतलाई थी। यदुवंशी परस्सर यह कहने लगे कि द्वादश वर्ष समाप्तप्रायः हैं एवं अब भय करने का कोई कारण नहीं-मुनि ने शायद भूल से ही कहा होगा। द्वारिका नष्ट होने की अवधि अभी शेष थी। ग्रीष्म की ऋत थी। अपने तप का परीक्षण करने के लिए द्वीपायन मुनि नगर के बाहर एक शिला पर आसीन हुए। संयोग से उसी समय शम्भुकुमार, सुभानुकुमार आदि यादव कुमार वन-क्रीड़ा के लिए गये। प्रचण्ड ग्रीष्म के कारण उन्हें तीव्र पिपासा लगी। वे जल के सन्धान में यत्र-तत्र विचरण करने लगे। अकस्मात् पर्वत की कन्दरा में रखे हुए कुछ पात्रों पर उनकी दृष्टि पड़ी, जो जल से परिपूर्ण थे। यहाँ यह बतला देना आवश्यक है कि ये सब पात्र मद्य के थे, जिन्हें श्री नेमिनाथ भगवान के मुख से द्वारिका नष्ट होने की वाणी सुन कर नगर-निवासी पर्वत की कन्दरा में रख आये थे। वर्षा में जल एवं वायु के झकोरों से उनमें पुष्प-पत्तियाँ पड़ा करती थीं। इसलिये उन बर्तनों का जल मद्य (शराब) सदृश उन्मत्त करनेवाला हो गया था। पिपासु राजपुत्रों ने वही जल पी लिया। उनके नेत्र रक्तवर्णी हो गये। वे उन्मत्त हो कर परस्पर कलह करने लगे। जब ये राजकुमार द्वारिका नगर के द्वार पर जा पहुंचे, तो उनकी दृष्टि एक क्षीणकाय मुनिराज पर पड़ी। मुनिराज को देख कर वे बड़े क्रोधित हुए। उन्हें स्मरण हो आया कि इसी द्वीपायन मुनि द्वारा द्वारिका भस्म होगी। इसलिये इसका वध कर डालना चाहिये। वे राजकुमार मुनि को पत्थर मारने लगे। वे तब तक पत्थर मारते रहे, जब तक द्वीपायन मुनि भूमि पर नहीं गिर पड़े। फिर भी मुनि को क्रोध नहीं आया। वे धीर-वीर समस्त उपसर्ग मौन रह कर सहन करते रहे। यहाँ तक कि उन्मन राकमारों ने मुनि के मस्तक पर मातङ्ग (चाण्डाल) से 161 Jun Gunchak Trust
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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