________________ 16 P.P.Ad Gurransuri MS कैलाश के शिखर पर जा कर नारद ने रुक्मिणा का एक यथार्थ चित्र अङ्कित किया। जब चित्र मनोनुकूल बन गया, तो उसे लेकर वे द्वारिकापुरी को चले। श्रीकृष्णनारायण सभा में मासीन थे। उन्होंने आकाश-मागे से जाते हुए नारद को देखा। जब नारद निकट आ गये, तो उन्होंने आगे बढ़ कर आदरपूर्वक सत्कार किया। आशीर्वाद दे कर नारद सिंहासन पर विराजमान हुए। श्रीकृष्ण भी एक आसन ले कर समीप बैठ गये। परस्पर धर्म-चर्चा होने लगी। अवसर पा कर श्रीकृष्ण ने कहा- 'हे मुनिराज ! आप तो सर्वत्र भ्रमण करते रहते हैं। यदि कहीं कोई आश्चर्यजनक घटना हुई हो अथवा मनोविनोद की चर्चा हो, तो कृपया सुनाइये। आप मेरे परम मित्र हैं। मेरे लिए कोई नवोन सामग्री लाये हों, तो वह दीजिये।' श्रीकृष्ण की ऐसी जिज्ञासा सुन कर नारद मन-ही-मन प्रसन्न हुए। उन्होंने मुख से तो कुछ नहीं कहा, पर रुक्मिणी का चित्रपट सामने रख दिया। श्रीकृष्ण विस्मयजनक दृष्टि से चित्र को निहारने लगे। मानो मन्त्रबिद्ध हो गये हों, इस प्रकार निष्पलक वै चित्रांकित रूपसी को निहारते रहे। पर्याप्त अवधि तक उन्होंने विचार किया कि इस अनङ्ग सुन्दरी की रचना सृष्टि ने कैसे की होगी? त्रिभुवन में ऐसी रूपवती स्त्री कदाचित् अन्य नहीं है एवं न ही भविष्य में होने को सम्भावना है। भला नारदमनि को रोसी लावण्यवती के कहाँ दर्शन हए? यह अपनी वेणी से कृष्णवरणी नागों को लजित कर रही है. जब कि वाणी से अमत को ललाट से अष्टमी के चन्द को. नेत्र से मगी को.भौहों रामदेव के धनुष को एवं स्वर से कोयल की वाणी को परास्त कर रही है। इसकी गम्भीर नामि वापिकासी दीख पड़ती है। इसकी जङ्घायें मानो कदली-स्तम्भ हों। इसके कमल सदृश चरण, सुवर्ण-सी कान्ति, सूर्य-सा तेज एवं समुद्र-सम गम्भीरता अपूर्व हैं / यह है मला कौन ? इसका चित्र नारद मुनि ने कैसे अङ्कित किया ? वस्तुतः यह कामदेव को पत्नी है अथवा इन्द्राणो? चन्द्रकान्ता है या सरस्वती की प्रत्यक्ष मूर्ति। यक्षिणो है अथवा किन्नरी। श्रीकृष्ण के मन में ऐसे अनेक संकल्प-विकल्प उठने लगे। तत्पश्चात् उन्होंने नारद मुनि से जिज्ञासा के समाधान का निश्चय किया। श्रीकृष्ण ने नम्रतापूर्वक प्रश्न किया- 'हे मुनिराज ! यह किसका चित्रपट है ? इसे आपने कहाँ अङ्कित किया ? कृपा कर सविस्तार परिचय दीजिये। इस अनिन्द्य सुन्दरी का मात्र चित्र देख कर ही मेरा चित्त चञ्चल हो रहा है / मैं इसकी मोहिनी मूर्ति पर मन्त्रमुग्ध हो रहा हूँ।' श्रीकृष्ण की ऐसी विह्वल अवस्था देख कर नारद को जो प्रसन्नता हुई, वह वर्णनातीत है। बसला Jun Gun Aaradhak Trust 26