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________________ 166 P.P.AC.Gurmanasun MS. | जीता, जिनके बदले में क्रमशः सत्यभामा को चार, आठ, सोलह, बत्तीस एवं चौंसठ कोटि मुद्रायें देनी पड़ी। इधर प्रद्युम्न ने समस्त धन याचकों में वितरित करवा दिया। उसकी इस उदारता से शंभुकुमार की बड़ी कीर्ति फैली। अब वह भी सब का प्रिय बन गया। ठीक ही है, दाता किसको प्रिय नहीं होता ? तत्पश्चात् सत्यभामा ने बहुत सोच-विचार कर 128 कोटि मुद्राओं के सङ्ग अपना अश्व भेजा, पर प्रद्युम्न ने विद्याबल से मायामयी अश्व की रचना कर शंभुकुमार को विजय दिलवा दी। इस प्रकार बारम्बार पराजित होने पर सत्यभामा ने कहलवाया कि शंभुकुमार को मेरी मायामयी सेनाओं पर भी विजय प्राप्त करनी चाहिये। इससे शंभुकुमार तनिक उदास हो गया, किन्तु प्रद्युम्न ने तब उसे अपनी सर्वश्रेष्ठ विद्या प्रदान कर दी। फलतः शंभुकुमार ने अपनी मायामयी सेना की रचना कर ली, जिसमें रथ, अश्व, गज एवं शूरवीर इतनी अधिक संख्या में थे कि ऐसा प्रतीत होता था मानो सुभानुकुमार की सेना उसमें विलुप्त (छिप) हो जायेगी। दोनों मायामयी सेनाओं में घोर युद्ध हुआ। इस बार भी विजयश्री ने शंभुकुमार का ही वरण किया। प्रद्युम्न के परामर्शानुसार 256 कोटि मुद्रायें सत्यभामा से इस दाँव हारने की मँगवाई गयीं। वे सब मुद्रायें शंभुकुमार को मिलीं। तत्पश्चात् बलभद्र, युधिष्ठिर आदि राजागण ने श्रीकृष्ण से प्रार्थना की कि शंभुकुमार के समस्त कृत्य अमानुषी हुए हैं, अतएव इसे परिपक्व बनाइये। सब प्रियजनों का आग्रह देख कर श्रीकृष्ण ने एक मास के लिए शंभुकुमार को राजा बना दिया। फलतः वह दूसरे दिवस से ही सिंहासन पर विराजमान हुआ। तब बलभद्र, पाण्डव आदि राजाओं तथा भानु, प्रद्युम्न, सुभानु आदि भ्राताओं अर्थात् सब ने उसे नमस्कार किया। वह तीन खण्ड पृथ्वी का स्वामी बन गया। ..किन्तु शंभुकुमार ऐश्वर्य पाकर अपने पर नियन्त्रण न रख सका। वह इन्द्रिय सुख के लिए लम्पट बन गया। वह कुलीन स्त्रियों के घरों में प्रवेश कर बलात्कार करने लगा। उसके आचरण से सब लोग दुःखी हो गये। सबों ने जाकर नारायण श्रीकृष्ण से शंभुकुमार के दुष्कृत्यों का वर्णन किया। उन्होंने यहाँ तक कह डाला-'हे महाराज ! यदि आप उपयुक्त न्याय-व्यवस्था नहीं करेंगे, तो हम लोग राज्य त्याग कर अन्यत्र चले जायेंगे।' श्रीकृष्ण ने सब को आश्वासन दिया-'अब उसके शासन-काल में मात्र स्वल्प दिवस ही शेष रह गये हैं। जिस दिन से मैं राजसभा में जाने लगूंगा, उसी दिन से आपके समस्त कष्टों का निवारण हो जायेगा।' क Jun Gun Aaradhak Trust 166
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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